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________________ बुद्धि निधान अभय कुमार इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गये परन्तु कोई अँगूठी श्रेणिक तो आतुर बैठा था। वह तुरन्त रथ में| नहीं निकाल सका। एक दिन अभय राजगृह आया। बैठकर चला आया। और अभय से बोलाउसने कुर के पास पहुंचकर सैनिकों से कहा बालक ! तुम कुएँ से अँगूठी निकालोगे? देर मत करो शीघ्र ही निकालो। मैं कुएँ में से अंगूठी निकाल सकता हूँ परन्तु महाराज श्रेणिक के सामने ही निकालूंगा। महाराज! मुझे कुछ साधनों की आवश्यकता है। सैनिकों ने तुरन्त राजा श्रेणिक को सूचित किया। अभय ने अँगूठी को लक्ष्य करके गोबर कुएँ में फेंका।। MAIN क्या साधन चाहिए तुम्हें? बस, थोड़ा-सा गायो। का गोबर चाहिए। गोबर सीधा अँगूठी पर गिरा, मिट्टी सहित अँगूठी तरन्त गाय का गोबर लाकर दिया गया।। गोबर में चिपक गई। 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002806
Book TitleBuddhinidhan Abhaykumar Diwakar Chitrakatha 006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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