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________________ क्षमादान क्षमा में जीवन का वह सुख छिपा है, जिसे शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव ही किया जा सकता है। वैर, विरोध, द्वेष, कटुता और शत्रुता के पुराने घाव क्षमा की मरहम से ही भरे जा सकते हैं। जैन धर्म में क्षमा को मित्रता का आधार माना है, इसलिए पर्युषण पर्व को क्षमा या मैत्री के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जो सच्चे मन से क्षमादान करता है, अपना वैर/विरोध भुलाकर मित्रता का भाव बढ़ाता है, वही वास्तव में धर्म की सच्ची आराधना करता है। आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व की यह एक ऐतिहासिक घटना है। सिंधु (सौवीर) देश के राजा उदायन और उज्जयिनी नरेश चंडप्रद्योत दोनों ही वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष महाराज चेटक के दामाद थे। उदायन जहाँ अद्भुत धनुर्धर वीर, नीतिनिष्ठ, धर्मप्रिय शासक थे, वहाँ चंडप्रद्योत अपने अहंकारी व कठोर स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे। चंडप्रद्योत की सबसे बड़ी दुर्बलता थी, नारी ! महाराज उदायन की दासी स्वर्णगुलिका के सौंदर्य-लोभ में फँसकर चंडप्रद्योत ने उनसे शत्रुता मोल ले ली। भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में धनुर्वीर उदायन के हाथों चंडप्रद्योत बन्दी बना लिया गया। महारानी प्रभावती की प्रेरणा से महाराज उदायन भगवान महावीर के परम भक्त बने । अहिंसा और करुणा उनके रग-रग में रम गई। संवत्सरी पर्व के दिन समस्त जीवों से क्षमापना करने के प्रसंग में युद्ध बन्दी चंडप्रद्योत से भी उन्होंने क्षमा माँगी। चंडप्रद्योत ने एक मार्मिक बात कही- "मुझे बन्दी बनाकर मुझसे क्षमा माँगने का क्या अर्थ है ? अगर सच्चे मन से क्षमापना करना है तो पहले मुझे मुक्त करो !" इसी बात पर धर्मवीरं उदायन ने अपने दुर्दान्त शत्रु राजा को मुक्त कर दिया। उसके सब अपराध क्षमा करके प्रेम से गले लगा लिया। चंडप्रद्योत का हृदय भी उदायन के चरणों हृदय से निकला-“उदायन ! तुम महान् हो !" झुक गया। उसके महाराज उदायन ने क्षमापना को जीवन में चरितार्थ करके सचमुच में एक क्षमावीर का आदर्श उपस्थित किया। त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र आदि प्राचीन जैन साहित्य में इस प्रेरक घटना का बड़े गौरव के साथ वर्णन किया गया है। -महोपाध्याय विनय सागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशन प्रबंधक : संजय सुराना Serving Jinshasan संयोजन : श्री सुरेश मुनि • लेखक : उपाध्याय श्री केवल मुनि जी • सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशक श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. फोन सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. फोन : 2524828, 2561876, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) For Private & Personal Use Only 070332 [email protected] www.jainelibrary.org
SR No.002801
Book TitleKshamadan Diwakar Chitrakatha 001
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children Story, Literature, N000, & N040
File Size19 MB
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