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________________ ११६४ स क्रोधात्प्राहिणोत्तस्मै VI. 79.34a , क्रोधादभ्यभाषत VII. 14.9d ,, क्रोधेन मया चोक्तः VII. II.38a सक्रोधेन महात्मना VI. 56.30b सक्रोधो रावणं प्रति VI. 38.6b स क्षिप्रं समतीयाय III. 54.8a सक्षीराणां च वृक्षाणाम् IV. 26.25a स खरस्याज्ञया सूतः III. 253a ,, खातं पितृभिर्मार्गम् I. 41.6a ,, खातां च सतोरणाम् VI. 3.32d सखा तव काकुत्स्थः VI. 125.23a ,, दशरथः कथम् IV. 56.23d ,, दासोऽस्मि राक्षस VI. 40.Iob , परमको विप्रः VII. 47.17a ,, भव ममानध VII. 13.29d ,, मम विभीषणः VI. 37.35d ,, यस्य भवान्मम IV. 8.2d सखायं मातरिश्वनः V. 58.13d सखित्तमनुपालयन् VI. 50.51d सखित्वं चाप्युपैनु न: VI. 18.38d , प्रति राघव VI. 50.57b , प्रतिवेत्स्यसि VI. 50.57d सखित्वात्तस्य वै राज्ञः I. II.I7a सखिभिः प्रियबोधिभिः II. 69.5b सखीजनसमावृता II. 78.12b सखीभिरेव संयुक्ताम् III. 75.18c सखीमिव गतोत्साहाम् III. 52.35c सखीच विगाहस्व II. 95.14a सखीस्नेहेन सुव्रताम् VI. 33.5b सखे कोतूहलं मम IV. 13.15b , स्वां चानुमानये VI. I2121d , देयं तु सर्वदा II. 87.17b . सखेऽभ्यागच्छ पश्य त्वम् II. 32.2c . सखे राघव धर्मज्ञ VI. 50.56a सख्यं कुरुष्वेति तदाभ्युवाच III. 73.46d सख्यं चकार ब्रह्मर्षिः I. 65.25c .., च रामः सुग्रीवे VI. I28.39a ,, तदा कर्तुमियेष ताभ्याम् IV. 339d ।, संबन्धकं चैव I. II.18a सख्युर्नित्यं सखा गतिः IV. 8.40d स गङ्गां प्राग्वटे तीर्वा II. 7I. I0a सगजाभिः करेणुभिः VI. 127.12d सगणं राक्षसं हत्वा V. 56.Ita , रावणं रणे VI. 50.22d " , इत्वा V.39.43a सगणः प्रत्यपद्यत II. 8I.Iod सगणाश्च द्विजर्षभाः III. 24.24b स गतासुर्गतश्रीकः VI. 58.54a ,, गतिः स परायणम् II. 48.17d ,, गत्वा गणितान्वासान् VII. 7L.3a ,, ,. चोत्तरं तीरम् VII. 48.23c ,, ,, तप आतिष्टत् I. 36.2bit ,, ,, दरमध्वानम् II. 93.6a III. 7.2a VI. 20.I. , 85.33a , 125.27c नगरी लङ्काम् VII. I3 13a निलयं राजा I. 72.21a , मनसा पूर्वम् V. 13.50a ,, यमुनातीरम् VII. 66.15a लक्ष्मणः श्रीमान् III. 15.24a ,, ,, विप्रियाण्याह VII. 67.18a , , सरयूतीरम् VII. I06.15a ,, ,, सागरं राजा I. 44.a ,, ,, हिमवत्पावें I. 55.12a. , गदा परमानंदाम् III. 29.25b , सगदो हैहयाधिप: VII. 32 46b सगन्धर्वाः सराक्षसाः II. II.! . सगन्धर्वोरगान्भुवि I. 27.30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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