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________________ १११७ शत्रुजयं नागमुदनकायम् II. 15.46d शत्रु जित्वा रणाजिरे VI. II5.2b ,, विजयिन मेने VII. 22.Ic शत्रुः कस्तस्य नो द्विजेत् V. 37.16d ,, पतिप्रवादेन II. 7.27a ,, शरणमागत: VI. 18.24b शत्रूणांमप्य कम्प्योऽपि VI. 59. IITE शत्रूणां कदनं चनु: VI. 82.15a " , पश्य VI. 63.33c ,, प्रतिघातार्थम् VI. 37.25c , वा पराजयम् VI. 69.36d , शत्रुसूदनाः VII. 5.27d ,, शोकवर्धनम् VI. 21.6b ,, स तु मूर्धनि V. 4.3d शत्रूनाक्रम्य मूर्धसु VI. 13.3d शत्रून्युधि विजेष्यसि VI. 60.82d शत्रून्विषहते युधि II. 67.24d शस्तव निशाचर VI. 12.360 , महाबल VI. 13.8b , महाबलान् VI. 63.42b शत्रोनिधनकाझ्या III. 51.7d शत्रोनिधनकाक्षिणः VI. 103.24d शत्रोर्युधि विनाशेन VI. 63.37c शत्रोः पित्रभिधानयोः II. 23.14 , प्रख्यातवीर्यस्य VI. I04.6a , प्रतिसमासने VI. 64.16b ,, शक्तिमवेक्षता V. 30.4b ,, सकाशात्संप्राप्तः VI. I7.39a शत्रौ हि साहसं यत्तत VI. 64.I0c शनै राजकुलं ययौ II. 5.21d शनैराश्वासयामास IV. 21.Ic शनैराश्वासयाम्यद्य V. 30.16c शनैरिव हयोत्तमः II. 49.3d शनैरेनामुवाच ह VI. II9.32d शनैर्गद्गदया वाचा VI. II6.4c | शनैर्जगाम सापेक्षः II. 19.3IC शनैर्जग्मुधृतव्रताः II. 34.13d शनैर्नरपतीश्वरः VI. 17.48d शनैर्भरतमन्वयुः II. 83.I7d शनैर्मदं षट्चरणास्त्यजन्ति IV. 28.29d शनैर्युद्धादसंभ्रान्त: VI. 103 30c शनैर्विविशुरन्योन्यम् VI. 73.57g शनैर्विश्वासित! तदा V. 65.17b शनैर्विसृज्यते सन्ध्या I. 34.16a शनैश्चकुर्मिथः कथाः II. II6.3d शनैस्तस्मिन्प्रशान्ते च II. 3.5c शनैः कीर्तयतानघ V. 65.16d ,, प्रेरय भामिनि IV. 21.9b ,, रामादनन्तरम् II. I04.20d ,, शनैरसंत्रस्तः VI. 82.23c , लक्ष्णमुवाच ह VI. 63.28d ,, समाश्वासयदग्रज प्रति II. 85.22d ,, समाश्वासयदातरूपाम् II. 78.26c शपथश्च कृतस्तत्र VII. 97.3c शपथेः शपमानो हि II. 75.61c शपमानमचेतनम् II. 75.6ob शपिष्ये तानपि ध्रुवम् IV. II.56d ,, राघवं तथा VII. I05.6d शपे ते जीवनाहेण II. II.6c ,, ,, मनुजाधिप II. I2.49b ,, वचनक्रियाम् II. II.d ,, , ,,,8d ,, मूलफलेन च V. 36.38b ,, सत्येन राघव II. 34.36b शप्तं कोपान्महात्मनः I.48.Iad शप्तः परमतेजसा VII. 30.31b , परवशं गतः VI. III.65d ,, स्त्रीभिः स तु समम् VII. 24.210 शप्तां पतन्ती निरये VI. II6.33c शप्तुमेवं प्रजापते VI. 61.25d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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