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________________ १०७१ विमुक्तकवचायुधम् VI. 75.67b विमृशंश्च स्वया युद्धया IV. 7.9c विमुक्तकेश्यः शोकार्ताः VI. II0.2c विमृश्य गुरुलाघवम् IV. 2.4b विमुक्तधर्माश्चपलाः III. 45.30a , च महाबलः VI. 71.74f विमुक्तबभिरणा वनेषु IV. 30.33b ,, बुद्धया प्रश्रितम् VI. III.93a विमुक्तमस्त्रेण जगाम चिन्ताम् V. 48.49c , राघवो वाक्यम् VI. I22.3c विमुक्तविव मायाभिः VI. I04.3a विमोक्षणे लोकगुरोः प्रभावात् V. 48.41b विमुक्तश्चाभवच्छीमान् V. 53.38c विमोक्षशक्तिं परिचिन्तयित्वा V. 48.42c विमुक्तं सक्तमङ्गदे V. 18.24d विमोक्ष्यामि समाधिना VII. 91.3d विमुक्तः प्राणसंशयात् VI. 60.77d विमोचयित्वा तं बन्धम् V. 58.155c विमुक्ता महती शिलाः VI. 58.53d " , , , ,, I56c विमुक्तास्तस्य वेगेन V. I.50a विमोचिते वानरपार्थिवे च VI. 67.75c विमुक्ते गगने घनैः IV. 30.1b वियद्गतमशोभत VI. 102.59d विमुक्तैः कपिराक्षसैः VI. 23.12b वियुक्ता पतिना तेन I. 2.12a , , , 4I.21b वियुक्तां पापनिश्चये II. 74.12b विमुक्तोऽप्यहमस्त्रेण V. 50.18a ,, मणिमिर्जात्यैः II II4.IOC विमुक्तोऽसौ सरस्वत्या VII. I0.47a वियूथां सिंहसंरुद्धाम् V. 17.22a विमुक्तोऽस्त्रेण वीर्यवान् V. 48.48b वियोगजाधप्रतिपूर्णलोचना: VII. 40.31c विमुक्तौ शरबन्धेन VI. 5I.I3a विरजोऽम्बरधारिणम् VI. II. Iob विमुक्त्वा शोककर्शिता V. 34.IIb विरथस्तु गदां गृह्य VII. 7.38d विमुखा विप्रदुद्रुवुः VII. I5.26d विरथान्प्रेक्ष्य तास्थितान् VII. 23.38d विमुखीकृतविक्रमः VI. I00.26d विरथो वसुधास्थः सः VI. 79.30c विमुखीकृत्य संहृष्टाः VII. 23.35c विरमैतेन भावेन II. 12.59c विमुच्य राक्षसं शक्तिः VI. I00.28c विरराज गदापाणिः VI. 69.32c , राघवरथम् VI. I07.20a ,, च तद्वेश्म V. 6.40c , रोषं रिपुनिग्रहात्ततः VI. III.I24c , धनुर्धरः VI. 69.23b , वाचं निपपात भूमौ III. 67.29d स , नरान्तकः VI. 69.30b विमुञ्चन्तं महाबलम् III. 34.7d , महाबाहुः III. I7.4a ,, शरोत्तमान् III. 25.39b , महामृगः III. 42.24b विमृगं पक्षिवर्जितम् VII. 77.Id ,, महावीर्यः VI. 56.28a विमृज्य नयने सास्त्रे III. 21.6c ,, व्यवस्थिता VI. 24.1b , बाष्पं परिसान्त्व्य चासकृत् II. 23.41a , समीपस्थम् VI. 4.104a , वदनं तस्य VI. 46.35a विरराद स मां भृशम् V. 38.23b विमृशन्निव पश्यामि II. 28.25c , स्तनांतरे V. 38.22f विमृशन्रोचयामास III. I5.8c विरराम द्विजोत्तमः I. 65.30b विमशंश्व न पश्यामि V. 30.33a , महातेजाः I. I9.20a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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