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________________ २५० . क्लिष्टेनोत्तमवाससा V. 15.21b क्लृप्तसर्वासनं श्रीमत् II. 91.35c : क्लेशं स्खं नावबुध्यते VII. 20.14d क्लेशश्च निरयोपमः VI. I00.50b क्लेशानामतथोचितः II. 104.7b क्लेशानां त्वं सुखोचितः II. 51.3b क्लेष्टुमर्हसि मां न त्वम् IV. II.I7a फ्लेष्टुं योग्यो न मानुषः VII. 20.8d क्क खल्विदानी मार्गेण VII. 20.20c क्व गच्छत भयत्रस्ताः VI. 66.5c . VI. 66.21C ,, मच्छसि वरारोहे III. 6I.ICC VII. 26.21a क्व गतस्तस्य मोक्षसे III. 51.27b V. 22.15d क्व. गतिर्मानुषाणां च I. 67.10a क गतो लप्स्यसे शर्म III. 53.23a क्व गतोऽसि विहाय न: VI. 92.13d VI. 92.15d क. च क्षात्रं तपः क च III. 9.27b ,,,, ते क्षत्रियबलम् I. 56.4a नीचपराश्रयः VI. 87.14d ,, ब्रह्मवलं महत् I. 56.4b ,, मायावलाश्रयम् VII. 15.9b ,, यक्षार्जवं युद्धम् VII. 15.9a ,, ,, शस्त्रं क्व च वनम् III. 9.27a ,,, स्वजनसंवास: VI. 87.14c , चारण्यं क्व च क्षात्रम् II. I06.18a ,, चासौ तव भर्ता 4 VII. 25.45a ,, मुनिपुंगवः VII. 94.23d ,, चांस्य भवनं तात III. 68.7% कचिच्च चतुरो मासान् III. II.25a ,, वृक्षाग्रनिषण्णकायैः IV. 28.37b क्वचित्कुमुदखण्डेश्च II. 50.21a क्वचित्कुर्वन्ति दारुणम् IV. 33.36d . क्वचित्क्वचिप्तर्वतसंनिरुद्धम् IV. 28.17c | क्वचिप्तझवनाकुलाम् II. 50.20d क्वचित्परिदशान्मासान III. II.24c कचित्पर्वतमात्रेथ IV. 64.5c क्वचित्पान विभागत: V. II.28d क्वचित्पीतान्यशेषतः V. II.27d क्वचित्पुलिनशालिनाम् II. 05.0b क्वचित्प्रकाशं क्वचिदप्रकाशम् IV. 28.15a क्वचित्प्रगीता इव षट्पदीर्घः IV. 28.33c कचित्प्रनृता इव नीलकण्ठैः IV. 28.33b कचिप्रनृत्तः क्वचिदुन्नदद्भिः IV. 28.37a कचित्प्रमत्ता इव वारणेन्द्रः IV. 28.33c क्वचित्फुलोत्पलच्छन्नाम् II. 50.20e क्वचित्सिद्धजनाकीर्णाम II. 95.9c क्वचित्सुसंवृते देशे V. 56.3c क्वचित्स्तिमितगम्भीराम II. 50.17a क्वचित्तीररु वृक्षैः II. 50.20a क्वचिदभ्यागतं पुनः I. 43.2.1d क्वचिदर्धावशेषाणि V. II.27c V. II.29a क्वचिदश्वो निवर्तते VI. 75.28d कचिदाभोगपुलिनाम् II. 50.18c क्वचिदाभाति शुक्कैश्च IV. 27.22c क्वचिदावर्तशोभिताम् II. 50. Iod क्वचिदुद्रमते योगात् III. 60.36c क्वचिद्गन्तुं हरिभ्रष्ट V. 64.22c क्वचिदम्भीर निर्घोषाम् II. 50 I7C क्वचिद्रुततरं याति I 43.23c क्वचिद्वाष्पामिसंरुद्धान् IV. 28.14a बचिद्वेणीकृतजलाम II.50.16c कचिद्भक्ष्यांश्च विविधान् V. II 28c क्वचिद्भीतोऽपसर्पति VI. 75.28b क्वचिद्भुषणनिःस्वनः IV. 61.6b क्वचिद्धैरवनिःस्वनाम् II. 50.Id | चिद्याति शनैः शनैः I. 43.24b " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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