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________________ प्रनष्टो जीवितान्ताय IV. 48.13a प्रवृत्त इव पर्वतः II. 95.8b प्रनृत्यन्तस्ततस्तत: IV. 1.36d प्रनृत्यन्ति ततस्ततः V. 61. 15d प्रनृत्येवाभवत्तदा VI. 74.4od प्रपतन्तं रणाजिरे VII. 7.31b प्रपतन्त्यश्रुबिन्दवः VI. 35.26b प्रपतनुत्पतन्निव V. 12.16d प्रपतामि नभस्थलम् V. 58.43d प्रपतेयं हि ते पृष्ठात् V. 37.46c 23 " " "> », 52c प्रपत्स्यते राज्यमिदं हि राघवः II. 9.6ra प्रपत्स्यते राष्ट्रमिदं चिराय II. 16.45b प्रपद्यतां हि कैकेयी II. 33.25a प्रपद्य धर्म सुचिराय राघवः II. 53.34d प्रपन्नानामरक्षणे VI. 18.31b प्रपन्ना रजनी पुण्या II. 54.34c प्रपन्नां शोकसागरम् II. 38.14b प्रपन्नो दीर्घमध्वानम् VI. 111.59c प्रपन्नो राजमार्ग च II. 15.28c प्रपलायितरक्षः स्त्री- V. 55.31d प्रपातपतितैः शीतैः VII. 31.16a प्रपातशब्दाकुलिता गजेन्द्राः IV. 28.28c प्रपातेषु वनेषु च IV. 40.32b प्रपां निपतितामिव II. 114.15d प्रपामध्ये तु विधिवत् I. 73.200 प्रपामिव पिपासितः V. 16.22d प्रपिबन्त्यपि चापरे VI. 4.91b प्रपीडिताङ्गा ददृशुः सुघोरम् VI. 67. 156c प्रपीड्य शरवर्षेण VI. 43.25c पुष्पितमहीरुहः II. 80. 13b प्रपुष्पिताशोक इवाचलोद्गतः IV. 16.39b प्रपूजिरे ह्यप्सरसच सर्वाः VII. 69.39b प्रपूज्य दिव्याभरणस्रगम्बरैः VII. 33.18b प्रपेतुर्मास्तोत्क्षिप्ताः IV. 11.48c 22 Jain Education International ७०० प्रपेदे सुमहच्छ्रीमान् II. 70260 हरिशार्दूल: V. 56.42a प्रफुल्लनलिनं सरः II. 5. 14d प्रफुल्लपद्मप्रतिमान नास्तदा VI. 71.rogb प्रफुल्ल बाणासन चित्रितेषु IV. 30.56a प्रफुल्लमिदमित्यपि IV. 1. 87d प्रफुल्ला इव किंशुकाः VI. 73.56d प्रबद्धा चातिवेगिन: V. 58.131b प्रबभौ न च सूर्यो वै VII. 9.31c बहुलम् VI. 52.23c " प्रबर्हणं प्रवीराणाम् VI. 23.30 प्रबुद्ध कमलोत्पलम् V. 57. Id प्रबुद्ध नीलोत्पलतुल्यदर्शन: IV. 38.34d प्रबुद्धपद्मप्रतिमैरिवाननैः VI. 67.175b प्रबुद्धपद्मोत्पलमालिनीनाम् IV. 30.49b प्रबुद्धस्तु निशाचरः VI. Co. 5gb प्रबुद्धानीत्र पद्मानि V. 9.37a प्रबुद्धा वाक्यमब्रवीत् V. 27.4d प्रबोधयामास तदा VI. 12. IC शनैः II. 56. IC प्रबोधयितुमिच्छसि VI. 64. 14d प्रब्रूयामात्मनो गुणान् VI. 22.48f प्रब्रूहि त्वं महाकपे V. 58.4d प्रभग्नगृहगोपुरा VI. 74.40b प्रभनधन्वा विरथः III. 28.32a प्रभग्नं राक्षसं बलम् VII. 7.24d प्रभग्नवनपादपा V. 14. rgd प्रभग्नं शस्त्रपीडितम् VI. 93.21b प्रभग्नं समरे दृष्ट्वा VI. 97.11a प्रभग्ना चिररात्राय V. 13.420 प्रभग्नान्वानरान्दृष्ट्वा VI. 67.42a प्रभने राक्षसबले VII. 7.25a प्रभञ्जन इवाप्रीतः IV. 31.13c प्रभञ्जन्निव तद्वनम् III. 9.24d प्रभया काञ्चनप्रभाः IV. 42.40d "" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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