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________________ प्रजाश्चैवान्वपालयत् VII. 65.37d प्रजाः समचिन्तयम् VII. 30.2od संरक्ष धर्मेण VII. 108.26c 23 संहरते रौद्रः VII, 22.41c प्रजासुखत्वे चन्द्रस्य II. 2.30a प्रजासु जगतो वर VII. 104.11b प्रजाः सृष्टास्तथा प्रभो VII. 30.1gb प्रजास्तमनुवर्तते VII. 43. 11d प्रजास्तीक्ष्णेन रावणः III. 41.14b प्रजास्वन्तर्गतः प्रभुः VII. 35.49b प्रजा हि परिपाल्या हि VII. 72.14C ह्यविधि पालिताः VII. 73. 16b प्रज्वलद्भिरिवोत्तमैः II. 114.1ob प्रज्वलन्तमिवानलम् V. 39.44d प्रज्वलन्तं तमासाद्य VII. 19.16d प्रज्वलन्निव सागरः VI. 102.33d प्रज्वालोद्गारिभिर्मुखैः VII. 6.56d प्रज्वाल्य तत्र चैवाग्निम् VII. 12.20a प्रज्ञां ते नावजानामि II. 9.38c " " " ददाति चाचार्यः II. 111.3c प्रज्ञामिव परिक्षीणाम् V. I. IIC प्रणतः पार्श्वतः स्थितः V. 38.68d पितुरन्तिके II. 3.32d प्रणतश्च प्रहृष्टश्च VI. 114.16 प्रणतः प्रेष्यवत्स्थितः IV. 9.3d प्रणते चैव सुग्रीवे IV. 28.6oc प्रणतो वाक्यमब्रवीत् VI. 18.16d " विनयाद्वीरः I. 52. IC प्रणदन्तः पुनः पुन: VI. 75-49d प्रणदन्मन्मथाविष्टम् IV. 1.24c प्रणनाश महीरज: II. 40.33d प्रणमत्प्रीतिसंतुष्टः II. 52.790 प्रणमन्तं तमुत्थाप्य II. 4.11a प्रणमन्ति हि ये तेषाम् IV. 13.26a प्रणम्य तं ब्रह्मसुतं गृहं ययौ VII. 33.18d Jain Education International ફૂટ प्रणम्य तस्मै प्रयतो नृपेन्द्रः I. 14.60b दैवतेभ्यश्व VI. 116.24a "" " " دو " "" " " 13 " " "" " " " "2 در 35 "" "" "" 23 23 बहुमान्य च VII. 6. 13b मुनिपुङ्गवम् I. 18.3d رد मूर्ध्ना पतिता IV. 26.21a रामं च ययाचिरे सह II. 106.34a रघुवंशवर्धनम् VII. 40.31b रामस्तान्वृद्धान् II. 20. 12a 33 विधिवचनम् I. 2.25c विधिवद्वीरम् VII. 108.21c शिरसा ततः V. 64.42b तस्मै VI. 65.32c देवम् VI. 102.8c VII. 10.15C " 33 " देवीम् V. 40.20a 22 58.102a देव्यै V. 65.7c " शिरसा नित्यम् VI. 128.1150 पादौ II. 119.12 VII. 40.27C 33 33 "" भूमौ IV. 42.49c रामम् V. 65. IC शैलम् IV. 41.31a " सत्कृत्य च साधु वक्ष्यति II. 104.33d 23 " स दशाननः VII. 66.34d प्रणम्याभिप्रसाद्य च I 61.12d प्रणयप्रीतिसंयुक्तम् IV. 29.8c प्रणयस्व च तत्त्वेन V. 20.70 प्रणयाच्चाभिमानाच्च II. 30.20 प्रणयत्त्वां प्रसादये IV. 7.11d प्रणयादुःखितेन च I. 1.62b प्रणयादेव संक्रुद्धा II. 27.1c प्रणयाद्बहुमानाच्च VI. 121.1ga प्रणजनसंबाधम् II. 52.98a प्रणष्टबलिकर्मेज्या II. 33.200 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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