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________________ परिधैर्मथिताः केचित् VI. 52.20a परिघैश्च गदाभिश्व VI. 86.22a परिधैः शूलपट्टिशैः III. 20.15b परिघोत्तम हस्तांश्च V. 4. 18c परिघोपबाहुस्तु VI. 77.11a परिघो व्यवकीर्णस्ते VI. 111.84a परिचक्राम मेदिनीम् I. 51.21d VII. 18.1d "" रावण: VII. 17.1d " " परिचर्य समन्ततः I. 14.33b परिचर्या करिष्यन्ति II. 52.530 चकार ह I. 46.gb परिचर्यामहे राज्यात् V. 35.27a परिचिक्षेप राघवम् II. 30.2d परिजग्राह पाणिना II. 100.2d "" III. 49.17d VI. 76.52d पाणिभ्याम् II. 103.32C परिज्ञातस्य कर्मभिः IV. 44.1ob परिज्ञातुं बलं सर्वम् VI. 25.16c परिज्ञाते पराक्रमे IV. 30.76b परिणाम्य निशां तत्र III. 8. Ic परणीतोऽस्मि हरिभिः VI. 30. Sc परिणीय च सर्वत्र VI. 3.ga परितः परिषस्वजे VI. 127.43d परितप्येत केन सः II. 106.4d परितप्स्यत्यहं यथा II. 66.7d परित स्त्विन्द्रजिद्वली VI. 73.5od परितापार्तबान्धवम् II. 65.27d परितापो न विद्यते II. 22.25d परितुष्टं मुनिं ज्ञात्वा I. 33.15a शतक्रतुम् V. 11.35d " परितुष्टः स रामस्य VI. 106.14 परितुष्टस्तु सुग्रीवः IV. 8.1a परितुष्टा प्रियं कृत्वा V. 36.6c دو " 21 ފ رو Jain Education International ६३५ परितुष्टाऽस्मि भद्रं V. 24.22a परितुष्टेन चेतसा VII. 3. 16b परितुष्टोऽस्मि कीर्तनात् IV. 56.22b ते भृशम् V. 1. 132b "" : " " " 33.14c " " लक्ष्मण III. 13.1b gafor VII. 2.30a परितुष्टोऽस्म्यहं सीते III. 10.21a परितुष्येद्यथा गुरुः VII. 65.23d परितो रुधिरोद्द्वारी VI. 31.3IC परितोषं न गच्छन्ति I. 58.22a परितोषमवाप हृष्टचेता: VII. 86. 21c परितोषश्च मे वीर VII. 52. 18c परितोषात्सगगदम् V. 1. 131b परितोष्यात्मपौरुषम् IV. 7.4b परित्यक्तानि कामिभि: II. 71.23d दैवतैः II. 33.1gb "3 " در वत्स VII. 3. 14a धर्मात्मन् VII. 10. 28a भद्रं ते I. 27.2a " "" परित्यक्ता मया लङ्का VI. 19.50 सीता VII. 97.4e " در "" " 33 afaga I. 54.3a परित्यक्तासि धर्मेण II. 74.2c परित्यक्तुमिच्छति II. 49.7d परित्यक्तो भयैः सर्वैः II. 100.45c परित्यक्ष्यति जीवितम् IV. 1. 5od V. 30.12d परित्यक्ष्यामि जीवितम् II. 14.1od परित्यक्ष्याम्यहं प्राणान् VI. 49.7a परित्यजति राघवम् II. 20.5d परित्यजेयुः पितरोऽपि पुत्रान् II. 12.10za परित्यजैनां शङ्कां तु VI. 116.7c परिश्यज्य पिता हि नः II. 105. 33b महद्धनुः III. 67.21d For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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