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________________ ६३२ परश्वधगदाधरा: VI. 73.12f परश्वधधराश्चान्ये VI. II.8c परश्वधहतस्याद्य III. 22.5a परं समासाद्य समुद्रतीरम् V. I.199b परं सागरदर्शनात् VI. 22.32d परसैन्य प्रधर्षणम् VI. I06.1b परसैन्यस्य मध्येन VII. 29.4c परसैन्यागते सति VI. 3.17b परस्त्रीहरणं तथा VI. 6I.Igf परस्परं केचिदतिब्रुवन्ति V. 61.17b , केचिदुपाश्रयन्ति V. 61.17a परस्पर कृताश्वासौ V. 35.33a परस्परं गदां गृह्य VII. 32.53c ,, नतोस्तत्र IV. II.44a ,, च ये तत्र VII. 71.19c ,, चाधिकमाक्षिपन्ति V. 5.Ila ,, चाह्वयताम् VI. 57.43c परस्परजयैषिण: V. 45.2d VI.69.53d परस्पर जयैषिणोः I. 75.17b ,, IV. II.42b VI. 88.33d परस्पर जयैषिणौ VI. 88.72d ,, , 89.72d परस्पर जिगीषया I. 14.19d परस्परजिघांसया VI. 55.17b परस्पर दिदृक्षया VI. 76.16d परस्परनिविष्टाङ्गयोः V. 9.61c परस्परं निर्विषही बभूवतुः V. 48.33c परस्परमथाब्रुवन् V. 48.56d परस्परमनुव्रताः VII. 5.14f परस्परममिक्रुद्धौ VI. 107.30c परस्परममिद्रुतौ VI. 107.30d परस्परममित्रघ्नौ IV. 16.26a परस्परवधे युक्तौ VI. I07.31a परस्परं विनिघ्नन्तौ VII. 32.59c परस्परविरोधिनों VI. 83.18d परस्परं शाल्मलि किंशुकाविव VI. 40.14d , शोणितरक्तदेही VI. 40,14b ,, श्लिष्टनिरुद्धचेष्टौ VI. 40.14c , संपरिरभ्य बाहुभिः VI. 94.4Ib परस्परसमागताः III. II.13d परस्परसमागमे I. 48.1b ___ , , 69.16d , VII. 90.10b । परस्परं समाश्लिष्य V. II.29e परपरस्य सदृशौ I. 50.21a परस्परस्याभिमुखौ VI. 107.35a परस्परं स्वेदविदिग्धगात्रौ VI. 40.14a परस्पराभिमुखयोः VI. I06.18e परस्परेण चालापम् V. 34.7c ,, रहिताः IV. 50.5a , सदृशौ I. 48.5c परस्पर्शात्तु वैदेह्याः III. 2.21a परस्मै सेति संध्यया VII. 4.21b परस्य चैवास्य विवासकारणम् II. 8.39d , वीर्य स्वबलं च बुद्धवा VI. 14.22a परस्यान्तरदर्शनम् VI. I04.19d परस्वहरणे युक्तम् VI. 87.22a परस्वानां च हरणम् VI. 87.23a परं हर्षमवाप च VII. I08.3rd ,, हर्षमवाप्तवान् VI. 105.20b ,, हर्षनुपागतः V. 58.12gb ,, हर्षमुपागमत् VII. 70.15d पराक्रमं चारिषु रावणात्मज: V. 47.9b पराकमज्ञो रामस्य III. 39.13a पराक्रममविज्ञाय V. 36.IIC पराक्रमश्चास्त्रबलं च संयुगे V. 48.6b पराक्रमस्य कालोऽयम् VI. I00.46c | पराक्रमस्त्वेष ममेह रोचते V. 41.3d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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