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________________ "" निरर्थं प्रवदन्ति ते II. 100.3gd निरस्तं दृश्य मारीचम् I. 30.1gc पुरुतेजसा V. 35.34b निरस्त: पापकर्मकृत् II. 110.26d निरस्तश्च रिपुस्तव IV. 8.44d निरस्तमिषुणैकेन IV. 12.37C निरस्तवीर्यं पतितं समीक्ष्य VI. 103.31d निरस्तहनुकः सीते VI. 31.260 निरस्ताः पतिता भूमौ VI. 66. 130 परिधावन्ति II. 61. IOC निरस्तो भ्रान्तचेतनः III. 38.2od निरस्यमानो रामस्तु VI. 102.37C निराकारा निरानन्दा II. 113.25a निराकृतश्च बहुश: VII. 13.20a निरानन्दा तपस्विनी V. 13.27b निरानन्दां तपस्विनीम् V. 20.1b VI. 81.12b " "" निरानन्दां ददर्श ह II. 57.5d 23 दृढव्रताम् VI. 126.47b निरानन्दा निराशाऽहम् IV. 20.ga निरानन्दानि सर्वशः II. 71.26b निरानन्दा महाराज II. 59.16a निराबाधो हरिष्यामि III. 36.20c निरामया विशोकाश्र VI. 128.1OIc निरामयो ह्यरोग I. 1. goc निरायुधानां क्रमताम् VI. 66.20a निरायुधो महातेजाः VI. 69.85a निरालम्बनमम्बरम् IV. 67.24b निरालम्बे विहायसि VI. 34.4b निराशस्तस्य जीविते IV. 46.8d निराशस्तु तया नद्या III. 64.1oa निराशाः कपिकुञ्जराः IV. 47.6d निराशा जीविते यदा IV. 50.24b वयम् VI. 94.25b " निराशानां मुमूर्षताम् V. 35.61d „ Jain Education International ५९५ निराशा निहते पुत्रे VI. 92.55a निराशो जीवितेऽभवत् VI. 45.25d निराशौ जीविते तथा VI. 25.15b निरास्वाद्यतमं शून्यम् II. 36.12 निराहारो दशाननः VII. 1. 1ob निरालोकः II. III.14a निराहारस्तथैव च VII. 3. 12d निराहाराः कृताः प्रजाः II. 52.42d निरीक्षते राजरथं तथैव माम् II. 58.37d निरीक्षन्ते दिवैौकसः VII. 84.17b नराधिपम् III. 64.1gb महात्मानम् VII. 83. 11c समागताः I. 76.18b " " " " "" स्म मृगाः III. 64.1gd निरीक्षमाणं तं दृष्ट्वा VII. 65.15a निरीक्षमाणः सहसा V. 67.9a महात्मा IV. 1. 126a निरीक्षमाणश्च ततः V. 11.37a निरीक्षमाणस्तां शक्रः II. 74.18a निरीक्षमाणा जग्मुस्ते II. 68. 140 निरीक्षमाणां द्विग्नाम् VII. 48.25e निरीक्षमाणा तमचिन्त्यबुद्धिम् V. 31. 18b निरीक्षमाणापि च भूमिमग्रतः II. 93.27b निरीक्षमाणाः प्रविनष्टहर्षाः II. 47.19d निरीक्षमाणा हरितं ददर्श तत् III. 46.38c निरीक्षेते परस्परम् I. 39.5b निरीक्ष्य तु बलं सर्वम् VII. 28.43c परमप्रीतः VII. 70.150 मतिरागता IV. 60.6d " "" ار " "" "" "" در माद्य गच्छ त्वम् VII. 48.1ga लक्ष्मणो दीनः VII. 46.24c स मुहूर्त तु II. 99.25a सर्वत्र विभक्तमात्मवान् II. 114. 29c निरीक्ष्यानुत्थितां सेनाम् II. 83.22a निरीतिका दिशो दृष्ट्वा I. 30.25c For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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