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________________ ५६७ नवे परिभवे कृते VI. III,81d न वेलामतिवर्तते II. 12.44b नवर्जलौघेर्धरणी वितृप्ता: IV. 28.47c नवैनंदीनां कुमुमप्रहासैः IV. 30.5ia न वोढुमहमुत्सहे VI. 128.3d नवोदितादित्य निभः शरांशुमान् V 47 15c नवोदितार्कोपमताम्रवक्त्रः VI. 59.14b नवोदितेष्वम्बुधरेषु नष्टाः IV. 30.44b नवं जलं पर्वतधातु ताम्रम् IV. 28.18b ,, नवमिवागतम् II, 105.25b ,, व्यक्तं लक्षये ह्यस्य VI. 59.27c ,, व्यतिष्टत करिमश्चित् IV. 2.2c ,, व्यतिष्ठत्स राक्षसः VII. I4.26d ,, व्यतिष्ठन्त संहता: VII. 27.42d ,, व्यथामभ्य पद्यत VI. 99.35d ,, व्यथां जनयस्तदा VI. 99.38d ,, व्यपत्रपसे नीच III. 53.3a ,, , राजन् VI. III.5c ,, व्यभासत शर्वरी II. I3.16b ,, व्यराजत मेदिनी IV. 17.3d ,, ,, कौसल्या II. 65.17c ,, व्याधिजं भयं चासीत् VI. 128.98c ,, व्याधिः प्राणिनां तथा VII. 99.13b ,, व्यावर्तयितुं शक्या III. 40.7c ,, शक्तः किं पुनर्युवाम् VI. 45.IId ,, शक्तस्त्वं बलाद्धर्तुम् III. 50.22a ,, शक्ता रावणं सोढुम् I. 20.22c ,, शक्ताः स्म प्रजापते VII. 6.26b ,, शक्तोऽद्यारम्यहं द्रष्टुम् II. 14.Ila ,, शक्नोमि विसर्पितुम् IV. 56.24d ,, शक्नोति निरीक्षितुम् II. 18.39d ,, शक्नोषीह भाषितुम् VI. 49.16b ,, शक्यते धारयितुम् III. 22.2c ,,, वारयितुम् II. 25.2a ,, शक्यन्ते बहुत्वात्त VI. 27.47e - न शक्यं खल्वियं लङ्का V. 3.24a ,, ,, जीवितुं त्वया VI. 87.29b ,, ,, धरणीतले VI. I.2d ,, , प्रमदा नष्टा V. II.44c ,, शक्यमतिवर्तितुम् IV. 18.63d ,, शक्यं मामवज्ञाय V. 3.29a ,, शक्यमीदृशं वक्तुम् VI. 18.8c ,, शक्यं यत्परित्यक्तुम् V. 25.20c ,, ,, सौप्तिकं कर्तुम् VI. 33.8a ,, शक्यस्तं प्रमार्जितुम् III. 50.12b ,, शक्यं वद्य ते द्रष्टुम् V. 3.36c ,, शक्या यज्ञमध्यस्था III. 56.18a ,, ,, रक्षसां पुरीम् V. 2.31b ,,, सा जरयितुम् IV. 6.7c ,, शक्यो भरतानुजः VI. 59.109d .. शक्योऽभ्युदयः प्राप्तुम् V. 34.22c ,, शक्यो वायुराकाशे III. 55.24a ,, ,, विनिगुहितुम् VI. 17.64b , शक्रस्य न सोमस्य VII. 92.17 ,, शक्ष्यामि विना रामम् II. 59.22c ,, शठो नापि दारुणः IV. 35.3b ,, शठः परिसर्पति VI. 17.63b ,, शत्रुमवमन्यते VI. 35.9c ,, शरास्तम्भहेतवः II. 23.30d ,, शर्म लभते भीरुः III. 56.35c ,, , , रामः V. 36.37c ,, , , 39.51c ,, ,, लेभे शोकार्ता V. 25.4c ,, शशाक घृणाचक्षुः II. 45. Igc ,, शशाक तदात्मानम् VI. 74.37c ,, ,, मनोगतम् II. 26.7b ,, , महीपतिः II. 14.59b ,, , रुजं कर्तुम् VI. 71.96a ,, ,, स सङ्ग्रामे VII. 29.31c |, शशाकेक्षितुं प्रियम् II. I03.18d 석 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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