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________________ ५५४ नद्यः शैलान्तराणि च IV. 43,10b ननन्दतुर्दशरथ: I. II.23a ,, शोणितसंस्रवाः VII. IOT.6b ननन्दतुर्वीतभयौ महावने III. 4.33c , समुद्वाहितचक्रवाकाः IV. 28.39a ननन्द दृष्ट्वा स च तान्सूरूपान् V. 5.16a नद्यश्च कलुषोदकाः II. 59.7b , सुस्वागतमित्युवाच III. 5.42d , विमलास्तत्र VI. I20. IOC ,, स्वजनै राजा I. 77.10a ,, सलिलायुताः VI. 120.16d ,, हत्वा भरताग्रजो रणे VI. 67.176c , स्तिमितोदकाः III. 48.gb , हरियूथप: V. 10.53f नद्यस्तत्र विसुनुवुः VI. 44.IIf , हृष्टो मृगपक्षिजुष्टाम् II. 56.35c , सहस्रशः IV. 43.39b न नप्तारं स्वकं न्याय्यम् VI. 61.25c नद्यास्तीरमुपागतौ I. 24.Id ,, नमेयं तु कस्यचित् VI. 36.IIb नद्यास्तु तीरे भगवन् VII. 49.4c ननद कम्पयन्भूमिम् IV. II.26c नद्याः स्रोत इवोष्णगे II. 7.15d ,, क्रूरनादेन IV. 1.1.20a नद्यो घना मत्तगजा बनान्ता: IV. 28.270 ,, च महास्वनम् IV. II.41b नद्योघानिव सागराः III. 25.13b ,, भीमनिदिम् VI. 96.150 नद्यो जलं विप्रतिपन्नमार्गाः IV. 28.45d ,, युधि सुग्रीवः VI. 96.9a नद्योऽनूपवनान्ताश्च V. 13.4c न नशिष्यति कल्याणी V. 55.22c न द्रक्ष्यामः पुनर्जातु II. 57.13c ,, नश्यन्तमुपेक्षे त्वाम् VI. I6.22c ,, द्रक्ष्यामि कृतश्रमः V. I.39d ,, नः पाशा भयावहाः VI. 16.7b ,, , यदि त्वां तु II. II2.26a ,,,, साध्यमिदं बलम् VI. 82.20d , द्वयोर्वदतां वर III. 65.8d ,,, स्याद्वयसनं धोरम् VI. I0.20c ,, द्विजातिरहं राजन् II. 63.50c ,, नागा नापि गन्धर्वाः V. 38.42a ,, द्वेष्टा विद्यते तस्य IV. 4.7a ननाद गिरिसंकाशः VI. 70.43c , धनुर्न रथो नाश्वाः V. 44.17c , च तदा तत्र VI. 22.34a , धनुर्भूषणाय मे II. 23.30b , ,, द्यौरुदधिश्च चुक्षुभे V. 47.13d ,, धनेन मया तुल्य: V. 20.34c " , पुनः पुनः VI. 58.44d , धर्मवादे न च लोकवृत्ते V. 52.17a ,, ,, , , 7I.37d ,, धर्मेण वियुज्येरन् VI. 83.20a ,, महाकपिः V. 53.36b ,, धर्मो धर्मदूषण VI. 87.12d ,, महाध्वनिम् V. 42.30d ,, धर्म प्रत्यवेक्षते I. 33.2d ,, महानादम् V. I.30c , , हातुमर्हसि I. 21.6d , , , 48.24c , धर्मस्त्रायते सीताम् III. 64.52c " , ,, I. 66.2a ,, धारये कोपमुदीर्णवेगम् IV. 31.4a ,, ,, महास्वनम् VI. 71.5d ,, ध्वजो न पताका वा VI. 55.20c , , , , 81.32d ,, न कुर्युर्वचो मम III. 21.3d ,, ,, मुहुर्मुहुः VI. 43.35d ,, ननन्द चिक्रीड जगौ जगाम V. I0.54b | 10.540 | " " " , 45.15d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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