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________________ त्वया ममैष संबन्ध: V. 1. 120C मया च वैदेह्या II. 21.49a मां प्रति युध्यता VII. 19.24d मे पापदर्शिनि II. 73.5b " " 39 "" 39 رو " 27 यद्दुष्कृतं कृतम् VII. 30.43d त्वयायमतुलो धर्मः VII. 61.7a त्वया योध्यां प्रविष्टेन VI. 126.6c स्वयारण्यं प्रवेष्टव्यम् II. 18.350 त्वया राक्षसवंशोऽयम् VII. 11.9c राक्षसशार्दूल III. 31.42C राघव गच्छेयम् II. 30.70 तत्त्वतः IV. 12.27b މ "" " " " संप्रासम् II. 96.22a राजन्प्रबोधितः VI. 62. 11d राजर्षयः सह II. 12.40b राज्यमयोध्यायाम् II. 101.23a रामः प्रतापवान् IV. 36.15b राम विहीनस्य VI. 119.13c रामस्य वानर IV. 34.14b रावण राक्षस VII. 34.8b 33 त्वया रावः सुदारुणः VII. 16.36d त्वया लक्ष्मण नाथेन VI. 91. Iga 33 " " 13 39 " यतः प्रजाश्चेमाः II. 3.40c यदपहास्यं मे II. 27.20 "3 "" यदीदृशं प्राप्तम् VI. 83.25c यदुक्तं नृपते तथास्तु तत् II. 43.56d " " त्वयावध्येन दैवतैः VII. 20.7b " त्वया वा तव वामात्यैः II. 100.21C वानर भाषितम् V. 37.2b वालिव पुरा IV. 14.6d वासव निर्भयात् VII. 30.32c वयाविगण्य वातापे III. 43.44a त्वया विज्ञातपूर्वश्च V. 51.11a 2: लोकास्त्रयः क्रान्ताः VI. 117.260 विधानं हर्यग्र्यः IV. 18.63c ४६६ Jain Education International त्वया विना चन्द्रनिभाननप्रभ II. 20.54b विना नरव्याघ्र II. 27.21e विप्रकृताभिश्व VI. 111.66a 33 31 " "" " "" " " " ފމ 23 " " رو " " 23 " त्वया वृत्तः केकयराजपुत्रि II. 37.35b त्वया वै धर्षिता बलात् III. 50.5b ور शक्तैस्तु राक्षसैः V. 37.57d शत्रुसमक्षं मे VI. 104.4c त्वयाऽशेषो जनश्चायम् II. 44.25a त्वया सकृद्धि शस्त्रेण VI. 69.5a त्वया सत्कृत्य मानिता: II. 100.31d " " .. " " "" " " वियुक्तां मरणाय निश्चिताम् II. 27.23b वियुक्ता रुदती IV. 6.3c विरहितश्चाहम् III. 61. ra " विरहिता दीना VI. 118.7c देवी III. 67.16a " 33 विरहितो नृप VII. 72.11d विष्णो समागतः VII. 84.15b विहसिता चाहम् V. 38. 18a विहीनस्तव शोकरुग्ण: II. 102.gc विहीनामिव माम्II. 24.8a विहीनो यत्राहम् VI. 123.41a वीर महाबल IV. 30.80b सुखोचिता V. 65.13d " वीरेण संगता II. 27.1gb सनाथा सुलभा परेण IV. 30.18b संत्यक्तया वीर VI. 116. 120 समग्रः प्रियया VI. 33.33c संवत्सरं युद्धूवा VI. 7.1OC समं विभर्दैश्व VII. 20.5c सह चरिष्यामि III. 18.Itc चिरं सख्यम् VII. 34 40c परंतप II. 31.35d 23 " ور " मम श्रेयः II 21.260 महीपते I. 73.5d सराक्षसा III. 37.6d For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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