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________________ ३२२ जानन्ती बत दिष्टया माम् V. 35 6a जानन्तौ तु न कुर्याताम् ,, 26 35c जानन्त्येव सुखोचिता II. 44.6b जानन्दशरथं वृत्तम् II. 90.7c जानन्धर्ममधर्म च , 106,IOC जाननपि च किं कुर्यात् II. 63.42c जानन्नपि स तेजस्वी V. 25.15c जानन्नपि समर्थ माम् IV. 59.22a जानन्नपि सुरानेवम् I. 16.IC जानन्विक्रममात्मनः VI. 41 9d जानस्तस्य पराक्रमम् ,, 65.16b जानाना मां विशालाक्षी V. 30.2Ic . जानामि कार्य त्वयि यत्कृतं नः IV. 33.53c ,, कार्यस्य च कालसङ्गम् IV. 33.53b , कोपं हरिवीरबन्धोः , 33.53a ,, गमने शक्तिम् V. 37.44a चेमो पुत्रौ मे VII. 97.5a तपसा सर्वम् ।, 17.18c तस्य रौद्रस्य VI. 85.I7c त्वां महावीर्यम् V. 38.39c त्वां सुधार्मिकम् I. 59.2b ,, त्वां सुरेश्वरम् , 76.17b ,, धर्म धर्मज्ञ II. 62.14a परमां भक्तिम् II. 52.6oa , भक्तिं च पराकम च II. 21.56b भरतं क्षान्तम् II. III.30a यस्मिश्च जनेऽवबद्धम् IV. 33.54c ,, वारुणांल्लोकान् IV. 58.13a , वीर्य तव र असे र VI. 59.96a. , शीलं ज्ञातीनाम् /I. 16.3a ,, शुभदर्शन V. 64.28d जानाम्यहं त्वां सुग्रीव IV. 39.4c जानासि च यथा शुद्धा VII. 48.12a , त्वं यथा सौम्य VII. 45.5a , दैवं हि तथाप्रभावम् II. 22.30d जानासि हि यथा सौम्य II. 22.17a जानास्यनियतामेवम् IV. 21.5a जानीते कर्मणः फलम् VII. 15.I9d जानीतैनं यथाभूतम् VII. 0.7c जानीमहे यथा भीरु V. 24.34c जानीयां को भवानिति VII. 12.14b जानीयाद्राघवो हि यत् V. 38.1od जानीयाद्वर्तमानां याम् V. 26.20c ज नीयुर्भाषितं तव II. II.15d जानीषे त्वं जनस्थानम् III. 36.2a ,, मनसा प्रभो VII. 30.25b , हि यथानेन VII. II.43e ,, ,, यथा लोकान् VII. I0.37a | जानीहि कच्चित्कुशली VI. I25.3c , त्वं प्लवङ्गम IV. 2.27b जानुना नीलमाहवे VI. 67.28b जानुभिर्मुष्टिभिर्दन्तैः VI. 30.8a. जानुभिश्च प्रधृष्टाश्च V. 62.16c ,, हताः केचित् VI. 53.24a जानुभ्यां पतितो भूतौ VI. 70.18a जानुभ्यामगमद्भमौ VI. 59.II3c जानुभ्यामपतद्भमा VI. 59.89c जानुभ्यामवनी गतौ VI. 54.32d जाने च रामं धर्मज्ञम् II. 90.22a ,, चैतन्मनःस्थं ते II. 90.21a , स्वां प्रीतिसंयुक्तम् II. 9I.3c ,, पापसमाचारम् IV. 17.22c जाबालिाह्मणोत्तमः II. I08.1b जाबालिमथ कश्यपम् VII. 91.2b जाबालिमथ काश्यपम् I. 8.6b " , ,, I2.5d जाबालिरथ काश्यपः VI. 128.6ob •, , VII. 96.2b जाबालिरपि जानते II. IIO.Ic । जाबालिश्च दृढव्रतः II. II3.2b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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