SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1007
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स तां भर्तृहिते युक्ताम् V. 17.23c ,, ,, भुजाभ्यां दीर्घाभ्याम् IV. 66.15a ,, ,, मातलिना नीताम् VI. 102.64a ,,,रत्नमयीं दिव्याम् IV. 33.4a सतां लोकात्सता कीर्त्याः II. 75.47a ,, लोकानवाप्स्यसि II. 75.62d , वेषधर पापम् IV. 17.23a स तां शिलामापतन्तीम् VI. 96.23a ,तांश्चाथ मुनीन्पृष्ट्वा I. 50.9c ,, तां श्रुत्वा विशालाक्षि VI. 33.18a ,, ,, सधूमानलसंनिकाशाम् VI. 59.106a , ,, समीक्ष्येव हरीशपत्नीम् IV. 33.39a ,, तांस्तु प्रियकान्प्राप्य II. 7I.13a स तां स्त्रीरूपविकृताम् V. 3.32a ,, ताः पप्रच्छ धर्मात्मा VII. 88.17a ,, ,, प्रोवाच राजासौ III. 56.29a सति मह्यं पराक्रमे V. 53.35b सतीभिवरनारीभिः VII. 24.21c स ती सरयूपारम् II. 32.38a से तीवेण च कोपेन VI. 67.122a सती त्वामहमत्यन्तम् II. 12.76a स तु कामवशं गतः V. 36.43d ,, कालो व्यतिक्रान्तः IV. 52.22c ,, कृत्वा सुवेलस्य VI. 38.1a , क्रुद्धो महावेगः VI. 98.17a क्षिप्तो बलवता VI, 98.15a गत्वा पुरीं लङ्काम् VII. II.25c , मधुपुरम् VII. 25.38c ,, मुनिानम् VII. 9.21a तत्र दशग्रीव: VII. 26.1a तत्रावसत्प्रीतः VII. 3.33a ,, तद्वचनं श्रुत्वा IV. 5.29c ,,, तस्याङ्गवेगेन V. 1.66c ,, तं छादयामास VII. 7.26a ,, ,, तादृशं दृष्ट्वा VII. 22.Ila । स तु तं ताम्यति धर्मात्मा VI. I21.5a ,,, तार विनिर्भय॑ VII. 34.11a ,,,, तां राम रामेति III. 52.13a ,, ,, ,, वीक्ष्य सुश्रोणीम् VII. 9.17c ,,, तीरं समासाद्य I. 2.4a ,,,, तीर्वाणवं रामः VI. 36.13a ,, ,, तेन तदा क्रोधात् VI. I03.1a ,,, , प्रहर्षेण III. 35.34a ,, प्रहारेण VI. 76.45a " . " , goa ,, , , 77.13a " " . ,, I3a , , , 98.7c तेनैव हर्षेण VII. II.20c ,,,, तौ राक्षसी दृष्ट्वा VII. 65.13a ,, दत्तवरः प्रीत्या VI. 126.53a ,,, दत्त्वा दशग्रीवः VII. 25.1a ,, दिव्येन रूपेण II. 64 47a ,,,, दिव्यो महाभीमः VII. 28-24a ,,, दीनः परित्रस्तः VII. 27.6a ,,,, दीर्घ विनिःश्वस्य VI. 95.2a दूरमुपागम्य IV. 48.2a ,,,, देशः प्रकाश्यते IV. 43.36b ,,,, देशो दुरन्वेषः IV. 48.5a ,, ,, विसूर्योऽपि IV. 43.54a ,, ,, दृष्टो मया शत्रु: IV. I0.20a ,, दृष्ट्वा नदीतीरे II. 52.74a ,,,, ,, बलं सर्वम् VII. 29.3a ,, ,, ,, यमः प्राप्तम् VII. 21.3a ,, ,, रुदन्दीनः II. 77.9a ,,, दृष्ट्वैव मां रात्रौ IV. I0.15c , द्वाराणि संयम्य VI. 41.95a द्वेष्टि न कंचन IV. 4.7b ,, धर्मप्रसङ्गेन VII. 2.7a ध्यात्वा मुहूर्त तु VI. 57.2a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy