SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अशोकवनिका शुभाम् V. 13.59b , VI. 34.15d अशोकवनिकासंस्था V. 57.38c अशोकवनिकास्थां ताम् VI. 47.12c अशोकवनिका स्फीताम् VII. 42.17a अशोक शोकापनुद III. 60.17a . अशोकः शोकवर्धनः IV. 1.59b अशोकस्तबकाङ्गारः IV. I.29c अशोकांश्च करजांश्च VI. 4.73a अशोकापीडसंनिभः VII. 32.44b अशोकाभ्यामिवाचल: V. 22.28d अशोकैश्चैव शोभिताम् IV. 27.17d अशोकैः शोकनाशनैः V. 15.7d अशोकैः सप्तपणैश्च III. 75.24c अशोको मन्त्रपालश्च VI. 127.IIC अशोको विजयश्चैव VI. 128.24a अशोभत तदा भूयः II. 78.18c अशोभत तदा रामः VI. 75.36a अशोभत महान्सेतुः VI. 22.76a अशोभत महावेगः II. 80.4c अशोभत मुखं तस्य IV. 67.7a. अशोभत विशालाक्ष्याः V. 35.85c अशोभतार्या वदनेन शुक्ले V. 29.8c अशोभनं योऽहमिहाद्य राघवम् II. 59.32a अशोभयन्त वसुधाम् II. I0.8a अशोभेतां तदायुधे II. 33.2b अशोभेतामृषिसमौ II. 52.70c अनाति नहि तं विना I. 18.31b अनीतेति प्रयच्छ वै I. 16.20b अश्मकुट्टाश्च बहवः III. 6.2c अश्मभिः परिमिन्नाङ्गः IV. 19.2a अश्मभूतमिवाचलम् VII. 96.9b अश्मवर्ष विमुञ्चन्ती I. 26.20a अश्मवर्ष यथा मेघः VI. 96.IIc अश्मवर्षेण महता VII. 89.13a अश्मवृष्ट्यामिवर्षिणीम् I. 26.23d अश्मशस्त्रमहावृष्ट्या VI. 8.17c अश्मसारमयं नूनम् IV. 23.10c अश्मसारमिदं नूनम् V. 26.6a अश्रद्धेयमिदं लोके II. 88.10a अश्रुकण्ठनिरीक्षितः II. 74.32d अश्रुतं पूर्वकैः कैश्चित् VII. 43.14c अश्रुतिं वापि गच्छत II. 48.27d अश्रुत्वा राजवचनम् II. 14.62a अश्रुपूरितलोचनाः VI. 45.27d अश्रुपूर्ण मुखं दीनम् II. 58.4c अश्रुपूर्णमुखी दीना V. 40.21c " , , 67.33c अश्रुपूर्णमुखीं दीनाम् III. 55.4a , ,, V. 15.23a अश्रुपूर्णमुखो दीनः II. 50.4c , 53.270 अश्रुभिर्नयनच्युतैः II. 29.23d अश्रुवर्णमुखा द्विजाः VI. III.I08b अश्रुवेगपरिप्लुतैः II. 57.19b , , 59.13b अश्रुसंपूर्णनेत्रा च II. 37.IIa अश्रुसंपूर्णवदनाम् V. 37.19c अश्रूणि परिमृगन्तौ II. 77.26a अश्रूणि मुमुचुः सर्वे II. 48.30 अश्रौषं राघवस्याहम् V. 31.15a अश्वकर्णादिकान्बहून् VI. 76.65b अश्वग्रीवमरिंदम III. 14.16d अश्वत्थाः कर्णिकाराश्च III. 73.3c अश्वत्थानर्तकाश्चासन् II. 91.49c अश्वपृष्ठे नागपृष्ठे VI. 71.29a अश्वमण्डूकसंकुलम् VI. 7.20d अश्वमेधं द्विजाः सर्वे VII. 91.7c अश्वमेधपुरस्कृतान् VII. 91.2d अश्वमेधं प्रचक्रिरे VII. 86.8d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy