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________________ 19 आवसत्यालये चिरम् III. 50.12d आवहत्परमां गतिम् IV. 17.8d आवां च सहितौ देवि VII. 58.13a आवां तु दृष्ट्वा पतितौ विसंज्ञौ VI. 73.68a आवां हन्तुं समभ्येति II. 96.17c आवामालोकयावस्तत् IV. 61.70 आवामासाद्य विष्ठितौ IV. 9.11d आवामिहागतौ सौम्य VI 25.16a आवारयदसंभ्रान्तः VI. 90.23c आवारयद्भिर्गगनम् II. 17.18a आवारितनिशाकरम् III. 64.6ob आवार्य गगनं मेघः I. 30. Ira आवासं त्वहमिच्छामि III. 5.33c 7.14C आवासमात्र कात्कुत्स्थ II. 108.6c आवास मादीपयताम् II. 89.15a आवासयन्तो गन्धेन II. 103.41C आवासस्तु गिरावस्मिन् VII. 88.220 आवासाः किंनराणां च III. 67.60 आवासान्ाक्षसानां च VI. 75.14a आवासा बहुभक्ष्या वै I. 13.13a आविकं विविधं चौर्णम् VI. 75.90 आविकाजिनसंवृतम् V. 10.6b आविद्धाभिश्च मुक्तामिः II. 17.40 आविध्य च पुनः पुनः VI. 70.63d आविध्य तु स तं दीप्तम् VI. 97.17a आविध्य दण्डं चिक्षेप II. 32.37C आविध्य परिघं वेगात् VI. 70. 18a आविला च पुरी लङ्का VI. 6.30 आविवेश गृहं कपिः V. 4.2gd आविवेश न तं निद्रा IV. 27.32a आविवेश महान्कोपः VI. 92. 16c आविवेश महान्क्रोधः VI. 99.2a आविवेश महान्हर्षः VI. 108.30a आविवेश विषादजम् III. 44.26b "" "" Jain Education International ९८ आविवेश स वीर्यवान् V. 1.34d आविवेशानिवारितः II. 70. 27d आविश त्वं महातेजः I. 36.17c आविश त्वं महायशा: VII. 56.1ob आविशन्ति च दुर्गाणि IV. 19.150 आविश्य लङ्कां वेगेन VI. 20.3a आविष्कृतपराक्रमम् VI. 111.49d आविष्कृतं मेघमृदङ्गनादैः IV. 28. 360 आविष्टं तेजसा रामम् III. 24.25a आविष्टा तेजसा संध्या IV. 40.63c आवृणोत्सदिवाकरम् III. 25.40b आवृणोषि शरीरं ते III. 62.3c आवृतं पश्य सौमित्र III. 64.40c आवृतं ब्रह्महत्यया VII. 86.8b आवृतं वदनं वल्गुः II. 26.100 आवृतं सर्वतो दुर्गम् III. 69.30 आवृतः स गिरिः सर्वैः VI. 41.52a आवृतो रथशक्तीमि: VI. 71.140 आवृतो रावणात्मजः VI. 37.12b आवृतो वदनं तस्याः V. 66. 130 आवृत्य पृथिवीं सर्वाम् IV. 39.38c आनृत्य बलवांस्तस्थौ VI. 42.23c ,,.25c " ,,.26c }} ,,.27c आनृत्य रक्षसां तेजः VI. 35.21a आवृत्य सुसमाश्रित: IV. 59.12d आवृत्याकाशमार्गेण IV. 58.5a आनृत्येदमुवाच ह V. 1. 14.2d आवेदयन्ति दैवज्ञाः II. 4. 18c आशङ्के तं निपतितम् IV. 61.16a आशङ्के नाधिजाने त्वम् III. 3. 38 आशया तौ धरिष्येते V. 13.37C आशया यदि मां रामः II. 59.30 आशामाशंसमानानाम् II. 75.50a "" >> "" "" " For Private & Personal Use Only در ލ www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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