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________________ प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों तथा लेखकों का काल-निर्धारण [इनमें से बहुतों का काल सम्भावित, कल्पनात्मक एवं विचाराधीन है। ई० पू० ईसा के पूर्व; ई० उ०=ईसा के उपरान्त] ४०००-१००० (ई० पू०) : यह वैदिक संहिताओं, ब्राह्मणों एवं उपनिषदों का काल है। ऋग्वेद, अथर्व वेद एवं तैत्तिरीय संहिता तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण की कुछ ऋचाएँ ४००० ई० पू० के बहुत पहले की भी हो सकती हैं, और कुछ उपनिषदें (जिनमें कुछ वे भी हैं जिन्हें विद्वान् लोग अत्यन्त प्राचीन मानते हैं) १००० ई० पू० के पश्चात्कालीन भी हो सकती हैं। (कुछ विद्वान् प्रस्तुत लेखक की इस मान्यता को कि वैदिक संहिताएँ ४००० ई० पू० प्राचीन हैं, नहीं स्वीकार करते)। ब्लूमफील्ड वैदिक साहित्य की उत्पत्ति २००० ई० पू० मानते हैं (रिलीजन आव दी वेद, पृ० २०, न्यूयार्क, १९०८) तथा वैदिक भावनाओं एवं सिद्धान्तों का प्रचलन इससे बहुत पहले से स्वीकार करते हैं। विटरनित्ज का कथन है कि यह अधिक संभव है कि वैदिक साहित्य का अज्ञात काल १२०० या १५०० ई० पू० की अपेक्षा २००० ई० पू० से २५०० ई० पू० के अधिक समीप है (प्राब्लम्स आव इंडियन लिटरेचर, पृ० २०, कलकत्ता)। कुछ पश्चिमी विद्वान् वास्तविक तथ्यों के रहते हुए भी अपनी मान्यता पर ही अधिक जोर देते हैं। ये अन्य उपलब्ध भारतीय साहित्य और अपुष्ट अनुमानों का विश्वास अधिक करते हैं। ८००-५०० (ई० पू०) : यास्क की रचना निरुक्त। ८००-४०० (ई० पू०) : प्रमुख श्रौतसूत्र (यथा आपस्तम्ब, आश्वलायन, बौधायन, कात्यायन, सत्याषाढ़ आदि) एवं कुछ गृह्यसूत्र (यथा आपस्तम्ब एवं आश्वलायन)। ५००-३०० (ई० पू०) : गौतम, आपस्तम्ब, बौधायन, वसिष्ठ के धर्मसूत्र एवं पारस्कर तथा कुछ अन्य लोगों के गृह्यसूत्र। ५००-३०० (ई० पू०) : पाणिनि। ५००-२०० (ई० पू०) : भगवद्गीता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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