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________________ लौगाक्ष, विश्वामित्र, व्यास ६३ यम की कई एक हस्तलिखित प्रतियाँ मिलती हैं। विश्वरूप, विज्ञानेश्वर, अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका तथा बाद वाले अन्य ग्रन्थ यम के लगभग ३०० श्लोकों को उद्धृत करते हैं । इस स्मृति में धर्मशास्त्र के लगभग - सभी विषय पाये जाते हैं। स्पष्ट है कि उपर्युक्त व्याख्याकारों एवं निबन्धकारों के समक्ष यम की कोई बृहत् पुस्तक थी । यमस्मृति के अतिरिक्त बृहद् यम की स्मृति का भी नाम आया है, जिसके उद्धरण स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य निबन्धों में मिलते हैं। महाभारत ( अनुशासन पर्व १०४.७२-७४) में यम की गाथाएँ मिलती हैं । यम ने मनुस्मृति से उद्धरण लिये हैं । स्मृतिचन्द्रिका, पराशरमाधवीय एवं व्यवहारमयूख ने यम को उद्धृत किया है । यम ने नारियों के लिए संन्यास वर्जित किया हैं । मिताक्षरा, हरदत्त, अपरार्क ने प्रायश्चित्त के बारे में बृहद् यम का उल्लेख किया है। हरदत्त एवं अपरार्क ने एक लघु यम एवं वेदाचार्य ने स्मृतिरत्नाकर में स्वल्पयम के नाम लिये हैं। हो सकता है दोनों नाम एक ग्रन्थ के हों, क्योंकि नामों का अर्थ एक ही है। ५०. लौगाक्षि अशौच एवं प्रायश्चित्त पर मिताक्षरा ने लागाक्षि के उद्धरण लिये हैं। संस्कारों, वैश्वदेव, चातुर्मास्य, वस्तु-शुद्धि, श्राद्ध, अशौच एवं प्रायश्चित्त पर अपरार्क ने इस स्मृतिकार के गद्यांश एवं श्लोक उद्धृत किये हैं । लौगाक्ष को उद्धृत कर अपरार्क ने प्रजापति को प्रमाण माना है । मिताक्षरा तथा अन्य व्यवहार-सम्बन्धी ग्रन्थों ने लौगाक्ष के योग एवं क्षेम-सम्बन्धी श्लोक को अवश्य उल्लिखित किया है । ५१. विश्वामित्र विश्वरूप द्वारा उद्धृत वृद्ध-याज्ञवल्क्य के श्लोक में विश्वामित्र धर्मशास्त्रकार कहे गये हैं । अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका, जीमूतवाहन का कालविवेक तथा अन्य ग्रन्थ विश्वामित्र के श्लोकों को उद्धृत करते हैं । विश्वामित्र के महापातक-विषयक अंश बहुधा उद्धृत होते हैं । ५२. व्यास जीवानन्द एवं आनन्दाश्रम के संग्रहों में व्यास के नाम की स्मृति मिलती है, जो चार अध्यायों एवं २५० श्लोकों में है । व्यास ने वाराणसी में अपनी स्मृति की घोषणा की। इसके विषय संक्षेप में यों हैं कृष्ण वर्ण के मृगों के देश में इस स्मृति का धर्म प्रचलित है; श्रुति, स्मृति एवं पुराण धर्म -प्रमाण हैं; वर्णसंकर सोलह संस्कार; ब्रह्मचारी के कर्तव्य; ब्राह्मण क्षत्रिय एवं वैश्य कन्या से विवाह कर सकता है, किन्तु शूद्र से नहीं; पत्नी - धर्म; गृहस्थ के नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य कार्य; गृहस्थाश्रम एवं दानों की स्तुति । ने विश्वरूप ने व्यास के कुछ श्लोकों की चर्चा की है। किन्तु ये श्लोक महाभारत में पाये जाते हैं । मेघातिथि ने भी महाभारत के कुछ अंशों को उद्धृत कर उन्हें व्यासकृत माना है। अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में लगभग २०० श्लोक उद्धृत हैं, जिनसे लगता है कि व्यास व्यवहार - विधि पर लिखा है और नारद, कात्यायन एवं बृहस्पति से उनकी बातें बहुत कुछ मिलती हैं। व्यास के अनुसार उत्तर के चार प्रकार हैं, यथा — मिथ्या, सम्प्रतिपत्ति, कारण एवं प्राङ- न्याय । लेखप्रमाण के प्रकार तीन हैं, यथा--- स्वहस्त, जानपद, राजशासन । व्यास में दिव्य केवल पाँच प्रकार के हैं । व्यास के अनुसार एक निष्क १४ सुवर्णों के बराबर एवं एक सुवर्ण ८ पल के बराबर होता है। इन सब बातों से यह कहा जा सकता है कि व्यासस्मृति की रचना ईसा के बाद दूसरी एवं पाँचवीं शताब्दी के बीच में कभी हुई। किन्तु यहाँ एक प्रश्न उठता है; क्या स्मृति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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