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________________ २४ धर्मशास्त्र का इतिहास तम श्रद्धास्पद हैं; (३२) सत्कार पानेवाले अन्य व्यक्ति, (३३) पाप के तीन कारण-कामविकार, क्रोध एवं लोभ ; (३४) अतिपातकों के प्रकार; (३५) पंच महापातक ; (३६) महापातकों के समान अन्य भयंकर उपपातक; (३७) कतिपय उपपातक; (३८-४२) अन्य हलके-फुलके पाप; (४३) २१ प्रकार के नरक एवं भांतिभाँति के पापियों के लिए नरक-कष्ट की अवधि; (४४) कतिपय पापों के कारण-स्वरूप कतिपय हीन जन्म; (४५) पापियों के लिए भाँति-भांति की रोग-व्याधि तथा उनके लिए प्रतिकार-स्वरूप नीच व्यवसाय ; (४६-४८) कतिपय कृच्छ (व्रत), सान्तपन, चान्द्रायण, प्रसृतियावक; (४९) वासुदेव-भवत के कार्य तथा उसके लिए प्रतिफल ; (५०) ब्राह्मण-हत्या एवं अन्य जीवों की हत्या, यथा गो-हत्या आदि के लिए प्रायश्चित्त; (५१-५३) सुरापान, वजित भोजन करने, सोना तथा अन्य पदार्थों की चोरी, व्यभिचार एवं अन्य प्रकार की मथुन-क्रियाओं के लिए प्रायश्चित्तं; (५४) विभिन्न प्रकार के अन्य कार्यों के लिए प्रायश्चित्त; (५५) गुप्त व्रत; (५६) अघमर्षण (पाप-मोचन) के लिए पूत स्तोत्र; (५७) किसकी संगति नहीं करनी चाहिए, व्रात्य, पश्चात्ताप न करनेवाले पापी, दान देने से दूर रहनेवाले; (५८) शुद्ध, मिश्रित तथा अन्य प्रकार का गुप्त धन; (५९) गृहस्थ-धर्म, पाक-यज्ञ, प्रतिदिन के पंचमहायज्ञ, अतिथि-सत्कार; (६०) गृहस्थ के अनुदिन वाले आचार, भद्र संवर्धन; (६१-६२) दन्त-धावन करने एवं आचमन के नियम ; (६३) गृहस्थजीवन-वृत्ति के साधन, मार्गप्रदर्शन के नियम, यात्रा के समय बुरे या भले शकुन, मार्ग-नियम; (६४) स्नान एवं देवताओं तथा पितरों का तर्पण; (६५-६७) वासुदेव-पूजा, पुष्प तथा पूजा की अन्य सामग्री, देवता को भोजन-दान, पितरों को पिण्ड-दान, अतिथि को भोजन-दान; (६८) भोजन करने के ढंग एवं समय के वारे में नियम; (६९-७०) पत्नी-संभोग एवं सोने के विषय में नियम; (७१) स्नातक के आचार के लिए सामान्य नियम; (७२) आत्म-संयम का मूल्य; (७३-८६) श्राद्ध, श्राद्ध-विधि, अष्टका श्राद्ध, किन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए, श्राद्ध के काल, सप्ताह-दिन में श्राद्ध-फल, २७ नक्षत्र एवं तिथियाँ, श्राद्ध-सामग्री, श्राद्ध के लिए निमन्त्रित न किये जाने वाले ब्राह्मण, पंक्तिपावन ब्राह्मण, श्राद्ध के लिए अयोग्य स्थल, तीर्थ या देश, साँड़ छोड़ना; (८७-८८) मृगचर्म-दान या गो-दान; (८९) कार्तिक-स्नान; (९०) भाँति-भाँति के दानों की स्तुति; (९१-९३) कृप, तालाव, बाटिका, पुल, बाँध, भोजन-दान आदि जनकल्याण के कार्य, प्रतिग्राहकों के अनुसार पात्रता-भिन्नता; (९४-९५) वानप्रस्थ के नियम, (९६-९७) संन्यासियों के लिए नियम; अस्थि, मांसपेशी, रक्त-स्नायु आदि का ज्ञान ; ध्यान-मुद्रा की कतिपय विधियाँ ; (९८-९९) पृथिवी एवं लक्ष्मी द्वारा वासुदेव-स्तुति ; (१००) इस धर्मसूत्र के अध्ययन का फल। यह धर्मसूत्र वसिष्ठधर्मसूत्र से कुछ मिलता है। इसमें छन्द (पद्य) पर्याप्त मात्रा में हैं। किन्तु एक विलक्षण बात यह है कि यह परमदेव द्वारा प्रणीत माना गया है। यह बात अन्य धर्मसूत्रों के साथ नहीं पायी जाती। इसकी शैली सरल है। यह व्याकरण-नियम-सम्मत है। बहुधा अध्यायान्त में पद्य आ जाते हैं। कहीं-कहीं इन्द्रवज्रा, कहीं उपजाति और कहीं त्रिष्टुप् छन्द हैं। ___विष्णुधर्मसूत्र का काल-निर्णय दुस्तर कार्य है। कुछ अध्याय गौतम एवं आपस्तम्ब के धर्मसूत्रों की भाँति प्राचीनता के द्योतक हैं। किन्तु अन्य स्थल इसे बहुत दूर ले जाते-से नहीं लगते। इस धर्मसूत्र एवं मनुस्मृति की १६० बातें बिल्कुल एक-सी हैं। कुछ स्थलों पर मनुस्मृति के पद्य मानो गद्य में रख दिये गये हैं। प्रश्न उठता है; क्या मनुस्मृति ने विष्णुधर्मसूत्र से उधार लिया है या विष्णुधर्मसूत्र ने मनुस्मृति से, या दोनों ने किसी अन्य स्थान से ? यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। किन्तु कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं उपलब्ध है जिसमें दोनों में एक-सी पायी जानेवाली बातें मिल जायें। लगता है, विष्णुधर्मसूत्र ने मनुस्मृति से ही उद्धरण लिये हैं। डा० जाली के मतानुसार याज्ञवल्क्य ने विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। किन्तु यह बात मान्य नहीं हो सकती, क्योंकि चरक एवं सुश्रुत में यह ज्ञान For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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