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________________ प्रस्तावना 'नॅरॅटीव लिटरेचर ऑफ धी जैनाझ' शीर्षक लेख तथा हरिभद्र सूरि रचित 'समराइच कहा'नो प्रो. डॉ. हर्मान याकोबीनो उपोद्धात जोई जवा खास भलामण छे. आ बधा लखाणोमां एटली सामग्री भरी पडेली के के एनो अहिंआ पुनरवतार करवो अस्थाने छे अने अनुपयुक्त पण छे. तेथी अहिं ए साहित्य विषे केवळ अंगुलिनिर्देश करीने ज संतोष पकड्यो छे. में नीचे आपेल विगतोनो आधार पण उपर्युक्त साहित्य ज छे. जैनोनु कथा साहित्य प्रमाणमा महाकाय छे. प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश अने गूजराती एम चारेय भाषामां लखाएला सेंकडो जैन कथा ग्रंथो आजे मळी आवेल छे. एमांना घणा खरा ग्रंथो विक्रमीय दसमी सदी पछी बनेला छे. विक्रमीय प्रथम सहस्राब्दिमां रचायेला ग्रंथोनी संख्या दसथी वधारे नथी पण ओछी हशे. जैन कथा साहित्यना मूळ 'ज्ञाताधर्मकथा' नामना छट्ठा जैन अंगमां मळी आवे छे. जैन कथाग्रंथोमां बहु प्राचीन ग्रंथ होय तो ते 'वसुदेवहिंडी' छे. आथी पण जूनुं चंद्रगुप्त मौर्यना गुरु भद्रबाहुरचित 'वसुदेव चरित' छे. परंतु अत्यारे ए उपलब्ध नथी. 'वसुदेवहिंडी' पछी विमल सूरि रचित 'पउमचरिय' आवे छे. आ सूरिए 'हरिवंस चरिय' लख्यु होवानो पण उल्लेख छ जो के ए अत्यारे उपलब्ध नथी. ऐतिहासिक अने काल्पनिक वस्तुओना मिश्रणवाळा 'वासवदत्ता', 'सुमनोत्तरा," उर्वशी', 'भैमरथी, अने 'नरवाहन दत्त' जेवा अनेक शृंगाररसप्रधान लौकिक कथा ग्रंथो रचाया. ___ शंगाररसथी छलबलती अने वर्णनोथी भरपूर कथाओमां पादलिप्त सूरिनी 'तरंगवती कथा' सर्व प्रथम छे. जो के अफसोसनी वात तो ए छे के ए कथारन हजु सुधी क्यांय कोईने मळ्यु नथी एटले आपणे तो अनिश्चितसमयी आचार्य वीरभट्ट के वीरभद्र शिष्य गणि नेमिचंद्ररचित तेना 'संक्षिप्त सारथी ज मूळकथानो रसाखाद करवानो रह्यो. 'तरंगवती'ने कुवलयमालाकारे संकीर्णकथामां खपावी छे. पादलिप्तसूरिए सर्जेली आ नवीन कथासृष्टिमां पाछळथी धीमी पण संगीन भरती थई. फलखरूपे 'मलयवती, 'नरवाहन दत्त', 'मगधसेना', 'बंधुमती', अने 'सुलोचना' नामक सुंदर कथाओ रचाई. कमनसीबे ए बधी कथाओ कालदोषे के बीजा कोई कारणे लुप्त थई गई अने एमना नामो सिवाय आपणे एमना विषे कशुं जाणता नथी. 'वसुदेवचरिय', 'पउमचरिय', अने 'हरिवंस चरिया' दि पुराण पद्धतिना चरित्र ग्रंथोने कथा वर्गमां न गणीए तो, ते पछी 'धम्मिल्लहिंडी' अने तेनी साथे जोडाएल 'वसुदेवहिंडी' नामनो कथा ग्रंथ आवे छे. ए आठमा सैका पहेलानो छे. तेना पछी हरिभद्रसूरिनी 'समराइच्च कहा' आवे छे. आ कथा कविनी कवित्वशक्तिनी साक्षात् प्रतिमा छे एटलं कहेवू बस थशे. आचार्य हेमचंद्र आ कथाने सकलकथानी कोटिमां मूके छे. अत्रे ए पण जणावQ जोईए के एमर्नु रचायेखें 'धूर्ताख्यान' पण हवे तो प्रसिद्ध थई गयेल छे." आ पछी उद्योतन सूरिनी 'कुवलयमाला' आवे छे. आ कथा चंपूना ढंगनी छे. रचनाशैलि 'कादंबरी' के 'दमयंती कथा' जेवी छे. काव्यचमत्कृति उत्तम अने भाषा मनोरम छे. विनोदमां कथा लेखके एमां पैशाची अने अपभ्रंश भाषामां पण वर्णनो आप्या छे. आ कथानी उपयोगिता ऐतिहासिक दृष्टिए पण खास महत्त्वनी छे. एनी पछी शीलांक- 'महापुरुष चरित', विजयसिंह सूरि रचित 'भुवनसुंदरी कथा', कोई अज्ञातनामा लेखकनुं 'कालकाचार्य कथानक' अने धनेश्वरन 'सुरसुंदरी चरिय' आवे छे. ए पछी महेश्वर सूरि रचित आपणो आ प्रस्तुत पर्वकथानो ग्रंथ आवे छे. त्यार बाद कथासाहित्य घणा मोटा प्रमाणमां जैन लेखकोए लख्युं छे; परंतु ए विषे अहिं लखवू अनावश्यक छे अने अप्रस्तुत छे एटले छोडी दीधुं छे. १०० आ ग्रंथ आचार्य जिनविजयजीए संपादित करी सिंघी जैन ग्रंथमालामां नं. १९ तरीके प्रकाशित कर्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002786
Book TitleGyanpanchami Katha
Original Sutra AuthorMaheshwarsuri
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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