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________________ दाने धन-कथा | ता मम णित्रुइ हे मुणिणो पेसेसु जंपिओ सूरी | भिक्खट्टा पट्टविया धणेण सह सूरिणा साहू || संपत्ता से गेहं हरिमुभे अंत- पुलइयंगेण । भत्ति- बहुमाण- पुत्रं घण पडिलाभिया मुणिणो ॥ ता चिंतेइ घणो धन्नो हं जेण मज्झ गेहम्मि । सोवाहि-विसोद्धा गहिया भिक्खा सुसाहूहिं ॥ पुन- कलियाण मुणिणो उवेंति गेहेसु खीण-मय- मोहा । कारण-रिसं निवडइ पावाण गेहेसु | परतुलिय- कप्पपायव- चिंतामणि- कामधेणु- माहप्पं । संमत्त महारयणं पत्तं धण - सत्थवाहेणं ॥ पत्तो य वसंतउरं सत्थेण समं महानरिंदो व । आनंदिय- जियलोगो मणहारी पाउस घणो व ॥ दहू नरेंदं सिट्टिणो य जं जस्स होइ कायवं । तं स चिउ (य) काउं पच्छा भंडाणि दाएइ ॥ कोडीसर - कणिएहिं धणाउ गहियाणि सव-भंडाणि । तेहिंतो वि धणेणं पडिभंडं महरिहमसंखं || संपत्त - महालाभा जाया सव्वे वि तत्थ धणणामो । संपत्तो यिय- पुरं कमेण सह सव-सत्थेण || तस्सागमेण तुट्ठो महूसवं कारवेइ नरनाहो । अहवा को व न तूसइ संपत्त-धणो जए पुरिसो १ ॥ एवं विग्ग सारं परत्थ-संपाडणेक तल्लेच्छं । बहु-यण - पसंसणे विसय- सुहं अणुहवंतस्स || वोलीणा पुसया पच्छा वोढत्तणम्मि संपत्ते । संपत्त - णमोकारो मरिऊणं विहु-णओ जाओ ।। इयता भाणियवं धणस्स चरियं सुयाणुसारेणं । जा उसभनाम नाहो तित्थयरो सो सम-पत्तो ॥ अतो एस धम्मोवएसो जंहा धणेण दाणं देनं, तहा दायां । देवि पसाएणं धणस्स चरियं सुयाणुसारेण । कहियं जो सुणइ नरो सो लहइ समीहिय-सुहाई || ॥ धण-कहाणयं समत्तं ॥ सांप्रतं शीलात्मकं धर्ममधिकृत्याऽऽह प्रकरणकारः - लहुइय-सेसाहरणं तियसाण वि दोल्लहं महाइसयं । राईम निच्चं सीलाहरणं खु रक्खेजा ॥ ४ १ ज. चें । Jain Education International २ ज. महीनरेंदो" । ३ प समय' । ४ प. जम्हा । For Private & Personal Use Only ५ ह. संम२ । 10 15 20 25 30 www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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