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________________ बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंधी - स्मरणाञ्जलि १९ नाथी तद्दन विमुख रहेता हता. तेमने शोख मात्र सारा वाचननो अने कलामयवस्तुओं जोवा - संग्रहवानो हतो. ज्यारे जुओ त्यारे, तेओ पोतानी गादी उपर बेठा बेठा साहित्य, इतिहास, स्थापत्य, चित्र, विज्ञान, भूगोल के भूगर्भविद्याने लगतां सामयिको के पुस्तको वांचता ज सदा देखाता हता. पोताना एवा विशिष्ट वाचनना शोखने लीधे तेओ इंग्रेजी, बंगाली, हिंदी, गुजराती आदिमां प्रकट लता उच्च कोटिना, उक्त विषयोने लगता विविध प्रकारनां सामयिक पत्रो अने जर्नल्स् आदि नियमित मगावता रहेता हता. आर्ट, आर्किऑलॉजी, एपीग्राफी, न्यूमिस्मॅटिक, ज्योग्राफी, आइकोनोग्राफी, हिस्टरी अने माइनिंग आदि विषयोना पुस्तकोनी तेमणे पोतानी पासे एक सारी सरखी लाईब्रेरी ज बनावी लीधी हती. तेओ स्वभावे एकान्तप्रिय अने अल्पभाषी हता. नकामी वातो करवा तरफ के गप्पां सप्पां मारवा तरफ तेमने बहु ज अभाव हतो. पोताना व्यावसायिक व्यवहारनी के विशाळ कारभारनी बाबतोमां पण तेओ बहु ज मितभाषी हता. परंतु ज्यारे तेमना प्रिय विषयोनी - जेवा के स्थापत्य, इतिहास, चित्र, शिल्प आदिनी - चर्चा जो नीकळी होय तो तेमां तेओ एटला निमन थई जता के कलाको ना कलाको वही जता, तो पण तेओ तेथी थाकता नहिं के कंटाळता नहि. तेमनी बुद्धि अत्यंत तीक्ष्ण हती. कोई पण वस्तुने समजवामां के तेनो मर्म पकडवामां तेमने कशी वार न लागती. विज्ञान अने तत्त्वज्ञाननी गंभीर बाबतो पण तेओ सारी पेठे समजी शकता ह्ता अने तेमनुं मनन करी तेमने पचावी शकता हता. तर्क अने दलीलमां तेओ म्होळा म्होटा कायदाशास्त्रीयोने पण आंटी देता. तेम ज गमे तेवो चालाक माणस पण तेमने पोतानी चालाकीथी चकित के मुग्ध बनावी शके तेम न हतुं. पोताना सिद्धान्त के विचारमां तेओ खूब ज मक्कम रहेवानी प्रकृतिना हता. एक वार विचार नकी कर्या पछी अने कोई कार्यनो स्वीकार कर्ता पछी तेमांथी चलित थवानुं तेओ बिल्कुल पसंद करता नहिं. व्यवहारमां तेओ बहु ज प्रामाणिक रहेवानी वृत्तिवाळा हता. बीजा बीजा धनवानोनी माफक व्यापारमां दगा फटका के साच झूठ करीने धन मेळववानी तृष्णा तेमने यत्किंचित् पण थती न हती. तेमनी आवी व्यावहारिक प्रामाणिकताने लक्षीने इंग्लेंडनी मर्कन्टाईल बँकनी डायरेक्टरोनी बॉर्ड पोतानी कलकत्ता- शाखानी बॉर्डमा, एक डायरेक्टर थवा माटे तेमने खास विनंति करी हती के जे मान ए पहेलां कोई पण हिंदुस्थानी व्यापारीने मळ्युं न्होतुं . प्रतिभा अने प्रामाणिकता साथै तेमनामां योजनासक्ति पण घणी उच्च प्रकारनी हती. तेमणे पोतानी ज स्वतंत्र बुद्धि अने कार्य कुशलता द्वारा एक तरफ पोतानी घणी मोटी जमीनदारीनी अने बीजी तरफ कोलीयारी विगेरे माईनींगना उद्योगनी जे सुव्यवस्था अने सुघटना करी हती ते जोईने ते ते विषयना ज्ञाताओ चकित थता हता. पोताना घरना नानामां नाना कामथी ते छेक कोलीयारी जेवा म्होटा कारखाना सुधीमां के ज्यां हजारो माणमो काम करता होय - बहु ज नियमित, व्यवस्थित अने सुयोजित रीते काम चाव्यां करे तेवी तेमनी मदा व्यवस्था रहेती हती. छेक दरवानथी कई पोताना समो वडीया जेवा समर्थ पुत्र सुधीमां एक सरखं उच्च प्रकार शिस्त-पालन अने शिष्ट आचारण तेमने त्यां देखातुं हतुं सिंघीजीमां आवी समर्थ योजकशक्ति होवा छतां - अने तेमनी पासे संपूर्ण प्रकारनी साधन संपन्नता होवा छतां तेओ धमालवाळा जीवनथी दर रहेता हता अने पोताना नामनी जाहेरातने माटे के लोकोमां म्होटा माणस गणावानी खातर तेओ देवी कशी प्रवृत्ति करता न हता. रावबहादुर, राजाबाहादुर के सर-नाईट विगेरेना सरकारी खिताबो धारण करवानी के काउन्सीलमां जई ऑनरेबल मेंबर बनवानी तेमने क्यारेय इच्छा थई न हती. एवी खाली आडम्बरवाळी प्रवृत्तिमां पैसानो दुर्व्यय करवा करता तेओ सदा साहित्योपयोगी अने शिक्षणोपयोगी कार्योगां पोताना धननो सद्व्यय करता हता. भारतव बेनी प्राचीन कळा अने तेने लगती प्राचीन वस्तुओं तरफ तेमनो उत्कट अनुराग हतो अने तेथी ते माटे तेमणे लाखो रूपिया खर्च्या हता. * सिंघजी सानो मारो प्रत्यक्ष परिचय सन् १९३० मां शुरू भयो हतो. तेमनी इच्छा पोताना सद्गत पुण्यश्लोक पिताना स्मारकमां जैन साहित्यनो प्रसार अने प्रकाश थाय तेवी कोई विशिष्ट संस्था स्थापन करवानो हतो. मारा जीवनना सुदीर्घकालीन सहकारी, सहचारी अने सन्मित्र पंडितप्रवर श्री सुखलालजी, जेओ बाबू श्री डालचंदजीना वेशेष श्रद्धाभाजन होई श्री बहादुर सिंहजी पण जेमनी उपर तेटलो ज विशिष्ट सद्भाव धरावता हता, तेमना परामर्श अने स्तावथी, तेमणे मने ए कार्यनी योजना अने व्यवस्था हाथमां लेवानी विनंति करी अने में पण पोताने अभीष्टतम प्रवृतेना आदर्शने अनुरूप उत्तम कोटिना साधननी प्राप्ति थती जोई तेनो सहर्ष अने सोल्लास स्वीकार कर्यो. सन् १९३१ ना प्रारंभ दिवसे, विश्ववंद्य कवीन्द्र श्री रवीन्द्रनाथ टागोरना विभूतिविहारसमा विश्वविख्यात शान्तिनिकेनिना विश्वभारती विद्या भवनमा 'सिंघी जैन ज्ञानपीठ' नी स्थापना करी अने त्यां जैन साहित्यना अध्ययन-अध्यापन ने संशोधन-संपादन आदिनुं कार्य चालु कर्यु. आ विषेनी केटलीक प्राथमिक हकीकत, आ ग्रंथमाळाना सौथी प्रथम किट थला 'प्रबन्धचिन्तामणि' नामना ग्रंथनी प्रस्तावनामां में आपेली छे, तेथी तेनी अहिं पुनरुक्ति करवानी रूर नथी. 4. $2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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