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________________ पउमसिरि चरित करवं एम निश्चय कर्यो. ए शुभ निश्चयनुं प्रथम फळ धाहिलनुं 'पउमसिरिचरिउ' विद्वज्जनोने उपहाररूपे अमे आपी शकीए छीए. पू० मुनिश्री जिनविजयजी आ संपादनमा मारा प्रेरणागुरु छे ए बाबतनो स्वीकार करतां मने ऊंडो हर्ष थाय छे. २. धाहिलना 'पउमसिरिचरिउ'नुं संपादन ताडपत्रनी एक ज पोथी उपरथी करवामां आव्यु छे. ए पोथी पाटण (उत्तर गूजरात) संघवीना पाडामांना ताडपत्रीय भंडारनी छे. आ भंडार मूळ लघुपोशालिक (शुद्ध शब्द “ लघुपौषधशालिक"-आनुं ट्रंकू रूप "लघुपौशालिक") गच्छनो छे. अत्यारे आ भंडारनी देखरेख संघवीना पाडाना पटवाओ राखे छे. सामान्यरीते बीजा भंडारोनी माफक आ भंडार पण जैनसंघनी मालिकीनोज गणाय छे. जे पोथीमां आ काव्यनो समावेश थयेलो छे ते पोथीनो नंबर ३०७ छे. तेमां सात ग्रंथो छे. - १. पुप्फवइकहा (प्राकृत) पत्र ४३. गाथा. ६४३.। २. सुलसक्खाणु (अपभ्रंश): कर्ता देवचंद्रसूरि. पत्र ४३ -१६. उपरना ४३ मा पाननी बीजी बाजुथी आ काव्य शरु थाय छे अने त्यार पछी बीजा पानाथी २,३,४ इत्यादि अंको कर्या छे. ३. सागरपुत्राख्यानक (प्राकृत) पत्र १६ -१९ गाथा ५१: कर्तानुं नाम नथी. १९ मा पाननी बीजी बाजु नीचे प्रमाणे लहिआनी पुष्पिका छे : "संवत् ११९१ भाद्रपद शुदि ८ भौमे । अधेह धवलक्कक्के समस्तराजावलीविराजित महाराजाधिराजपरमेश्वर श्रीत्रिभुवनगंडसिद्धचक्रवर्ति श्रीजयसिंहदेव कल्याणविजयराज्ये । एवं काले वर्तमाने तत्पादप्रसादात् महं० श्रीगागिल श्रीकरणादौ व्यापारान् करोति । अयेह श्रीखेटकाधारमंडले राज० सोभनदेवप्रतिपत्तौ । श्रीखेटकास्थानात् विनिश्चितवास्तव्य पंडितधामुकेन गणिणिदेवसिरियोग्यपुष्पवतीकथा लिखितमिति । शुभं भवतु लेखकपाठक[यो]श्चैव ॥ १ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ १ यदक्षरं परिभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्ज्ञातुमर्हसि (यद्भवेत् । क्षन्तुमर्हन्ति ) विद्वांसः कस्य न स्खलते मनः ॥ २॥" .. [आ पुष्पिकावाळा पानानो फोटो मुनिश्री जिनविजयजीए लेवराव्यो छे, अने तेनी प्रतिकृति आ मुदित ग्रंथना अग्रभागमा मूकेली छे. _ 'सुलसक्खाणु'ना अक्षरो स्थिरतापूर्वक ठीक लखाएला छे पण 'सगरपुत्राख्यानक'ना अक्षरो लेखके घणी ज झडपथी लखेला छे. ४. पउमसिरिचरिउ (अमभ्रंश) पत्र. १-५३ कर्ता धाहिल कवि : आ काव्यथी बळी नवा क्रमांक शरु कर्या छे. . ५. अंजनासुंदरिचरिउ (अपभ्रंश) पत्र. ५४-५५ काव्य अपूर्ण उतारेखें छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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