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________________ १५ प्रास्ताविक विचार पर प्रतिलिपियां हुई और पाटण, खंभा यत, मांडव, जेसलमेर आदि जैनधर्मके विभिन्नदेशीय तत्तत् प्रधान केन्द्रस्थानोंमें कागजके पुस्तकोंके बड़े बडे ज्ञानभण्डार स्थापित किये गये। वि. सं. १५०० के आसपास तो प्रायः ताडपत्र पर लिखना बन्धसा ही हो गया। इसके बादमें लिखी हुई शायद ५-१० भी ताडपत्रीय पुस्तकें गुजरात आदि देशोंमें लिखी नहीं मिलेंगी। . इस तरह ताडपत्रकी नई पुस्तकें लिखनी बन्ध हो गई और जो पुरानी लिखी हुई थीं वे धीरे धीरे अनेक तरहसे नष्ट होने लगी, इससे उनकी संख्या दिन प्रतिदिन घटने लगीं। उस पुराने जमानेमें, १३ वी १४ वीं शताब्दीमें, जिन पुस्तकोंकी संख्या देशमें लाखोंकी तादादमें थी वे आज इने - गिने सौ ही की तादादमें बच रही हैं । इनमेंसे जितनी पुस्तकें हम देख पाये और जितनीकी प्रशस्तियां और पुष्पिकायें हम प्राप्त कर सके उन सबका, प्रस्तुत भागमें एकत्र संग्रह किया गया है। ताडपत्रीय पुस्तकोंके प्रधान केन्द्र। २२. ताडपत्रके ये पुस्तक मुख्य करके पाटण, खंभा यत और जेसलमेर के ज्ञानभण्डारमें संरक्षित मिलते हैं। विधमान ताडपत्रीय सब पुस्तकोंका प्रायः जितना भाग इन तीन स्थानोंमें संरक्षित है । बाकीका १ भाग और और सब स्थानोंमें मिल कर होगा । इनमेंसे एक बहुत बड़ा भाग तो पूना में संगृहीत राजकीय ग्रन्थसंग्रहमें है जो अब भा ण्डार कर ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टी ट्यूट के तत्त्वावधानमें सुरक्षित है। बाकी कहीं दो-चार दो-चार ऐसे प्रकीर्ण स्थानोंके ज्ञानभण्डारोंमें अथवा यति -मुनियोंके पास विद्यमान हैं । कुछ पुस्तक युरोपके बडे बडे पुस्तकालयोंमें भी पहुंच गये हैं। - पाटण, खंभा यत और जेसलमेर में इन पुस्तकोंका जो बडा संग्रह हैं उनकी सूचियां प्रायः प्रकाशित हो चुकी हैं। पूना के राजकीय ग्रंथ संग्रहमें जो पुस्तकें हैं उनकी भी सूचि प्रकाशित है। बाकीके परचुटण स्थानोंमें जो दो-दो चार-चार पुस्तक इधर उधर रहे हुए हैं उन सबका ठीक पता लगाना अभी तक संभव नहीं हुआ। . ? .. प्रस्तुत संग्रहमें, उपर्युक्त स्थानोंमें रहे हुए प्रायः सभी पुस्तकोंके प्रशस्ति और पुष्पिकालेख संगृहीत हैं। इनमें से पाटण के भण्डारोंमें रंक्षित पुस्तकोंके तो प्रायः सब लेख हमने अपने हाथोंसे उतारे हैं। खंभा यत के पुस्तकोंके लेख खास करके प्रो. पीटर्सनकी रीपोटौ परसे लिये गये हैं और जेसलमेर के लेख स्वर्गस्थ श्रीयुत चिमन लाल डॉ० दलाल की तैयार की हुई सूचिसे उद्धृत किये हुए हैं। पूना की पुस्तकोंके लेख विशेष करके प्रो० कीलहोर्नकी रीपोर्ट परसे नकल किये गये हैं। पर, जेसलमेर की पुस्तकोंमें जो कुछ बडी - बडी पद्यात्मक प्रशस्तियां हैं वे इस संग्रहमें छपनी बाकी रह गई हैं। इसका कारण यह है कि ख. चि० डा० द लाल ने जब जेसलमेर जा कर उक्क सूचि तैयार की थी, तब उन्होंने वहांके पुस्तकोंमें जितने छोटे पुष्पिका-लेख थे उन सबकी तो नकल कर ली थी; पर विशेष अवकाशके अभावसे उन बडे बडे प्रशस्ति - लेखोंकी नकलें वे नहीं कर पाये थे. और इससे उनकी सूचिमें उन लेखोंका अभाव रहा । अब पिछले शीतकालमें, जब हमारा जेसलमेर जाना हुआ और पूरे पांच महिनों रह कर वहांके भण्डारोंका खूब अच्छी तरह निरीक्षण करनेका सुअवसर प्राप्त हुआ, तब हमने अन्यान्य प्रकारके विपुल साहित्यके साथ, उन बडी पद्यात्मक प्रशस्तियोंका भी उतारा कर लिया है । परंतु प्रस्तुत संग्रह, इसके पहले ही बहुत समयसे, छप कर संपूर्ण रूपसे तैयार पड़ा था-सिर्फ इस प्रस्तावनाके अभावहीसे इसका प्रकाशन रुका हुआ - था- इसलिये इसमें उन प्रशस्तियोंका समावेश नहीं हो सका। बाकी यथाज्ञात ताडपत्रीय सभी प्रशस्तियां और पुष्पिकालेख इसमें सन्निविष्ट हैं। .... ....... इस संग्रहमें छोटे बडे सब मिल कर १.११ तो प्रशस्ति लेख हैं जिनमें अन्तिम दो लेख गद्यमें हो कर बाकी सब पद्यमय हैं। ४३३ वैसे संक्षिप्त लेख हैं जिनको हमने 'पुष्पिकालेख' से उल्लिखित किया है । इस प्रकार सूब मिलाकर ५४४ लेख इसमें संगृहीत. हुए हैं, जो प्रायः उतनी ही संख्यावाले भिन्न भिन्न पुस्तकों परसे लिये गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002781
Book TitleJain Pustak Prashasti Sangraha 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1943
Total Pages218
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size14 MB
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