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________________ इसके ऊपर पाँच-पाँच देवकुलिकाओं की पाँच शाखाएँ हैं। मध्य की शाखा आगे को निकली है और वह चौड़ाई में आसपास की शाखाओं से दूनी है। मध्य की प्रथम देवकुलिका में (चित्र 22) एक साधु एक शूकर को सम्बोधित कर रहे हैं। उसके ऊपर एक साधु अपनी पीछी कमण्डलु लिये खड़े हैं, और उनके चरणों का स्पर्श करता हुआ एक दाढ़ीधारी युवक झुका है और एक महिला हाथ जोड़े खड़ी है (चित्र 22)। ___ इसके ऊपर की तीन देवकुलिकाओं में तीन प्रेम-मग्न-दम्पतियों का आलेखन है। आसपास की दोनों शाखाओं में विभिन्न मुद्राओं और वाद्य-यन्त्रों के साथ खड़े हुए स्त्री-पुरुष आलिखित हैं। दायीं ओर यमुना (चित्र 21) और उसकी तीन सहायक देवियाँ तथा उसके ऊपर नागी का अंकन हआ है। इनके बायीं ओर एक पुस्तकधारी उपाध्याय आलिखित हैं। उसके ऊपर यहाँ भी पाँच-पाँच देवकुलिकाओं की तीन शाखाएँ हैं। मध्यवर्ती शाखा में प्रेमासक्त-दम्पतियों तथा आसपास की शाखाओं में पूर्ववत् स्त्री-पुरुषों के अंकन हैं। सिरदल के मध्य में कमलाकृति आसन पर द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ' का पद्मासन में और उनके दोनों ओर एक-एक तीर्थंकर का कायोत्सर्गासन में अंकन है। उनके भी दोनों ओर तोरण के नीचे उड़ान भरते हुए पाँच-पाँच विद्याधर-युगल और उनके भी ऊपर नवग्रह चित्रित हुए हैं। फिर उनके भी ऊपर एक नवीन शाखा प्रारम्भ होती है, जिसकी मध्यवर्ती देवकुलिका में एक पद्मासन तीर्थंकर और उसके दोनों ओर चार-चार पद्मासन तथा छह-छह कायोत्सर्गासन तीर्थंकरों के अंकन इस शाखा के ऊपर तथा मध्यवर्ती देवकुलिका के दोनों ओर तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्नों (चित्र संख्या 19 और 20) का चित्रण हुआ है। इसके बायें महाकाली नाम की नरवाहिनी विद्यादेवी' और दायें अम्बिका यक्षी के आलेखन हैं। इसके नीचे सरस्वती और बायें महाकाली विद्यादेवी के नीचे लक्ष्मी के अंकन हैं। 1. दे.-चित्र 201 2. दे.-चतुर्थ अध्याय की पाद टिप्पणी। 3. दे.- पंचम अध्याय की पाद टिप्पणी। 4. दे.-चतुर्थ अध्याय की पाद टिप्पणी। 5. बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासन देवी। 6. (अ) कामाख्या निलयीभूता बद्धपद्मासनस्थिता। अक्षमाला तथा वीणा पुस्तकं च कमण्डलुः ।। नीलकण्ठी श्वेतभुजा श्वेतांगी चन्द्रशेखरा । महाविद्या महावाणी भारती च सरस्वती ॥ ___ भुवनदेवाचार्य : अपराजितपृच्छा, 230, 11-15। (ब) दे. --चतुर्थ अध्याय की पाद टिप्पणी। 7. दे.-चतुर्थ अध्याय की पाद टिप्पणी। 108 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
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