SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमि ठोस है । सभी मन्दिर और मानस्तम्भ चारों ओर से प्रशंसनीय लताओं और औषधि-वृक्षों से सुशोभित हो रहे हैं ।" उनका निर्माण पाषाण से हुआ है । पाषाणों की जुड़ाई में चूना, लोहा और सीसा का प्रयोग किया गया है। मिट्टी और लकड़ी आदि अस्थायी सामग्री का प्रयोग मूलतः बिलकुल नहीं हुआ है। आधुनिक काल में जीर्णोद्धार के लिए सीमेण्ट और चूना तथा पाँच-छह द्वारों में कपाटों के लिए काष्ठ फलक प्रयोग में लाये गये हैं । पाषाण यहीं से खोदकर निकाला गया था । साधारणतः लाल बलुआ और 'ग्रेनाइट' तथा कहीं-कहीं काला और भूरा बलुआ पाषाण प्रयोग में आया है । ( 2 ) निर्माता और निर्माणकाल देवगढ़ की वास्तु और मूर्ति-कला आबू और खजुराहो आदि की भाँति किसी एक व्यक्ति या राजवंश की देन नहीं है । इतनी उत्कृष्ट और विपुल कृतियों के निर्माण में जनता का सहयोग, शासक वर्ग का प्रोत्साहन, कलाकारों के स्थानीय होने से सरलता से उपलब्धि और निर्माण-स्थल पर ही पाषाण की प्राप्ति बहुत सहायक सिद्ध हुई होंगी । इन कृतियों का निर्माण लगभग सोलह सौ वर्षों तक चलता रहा । यहाँ प्राप्त हुए एक अभिलेख की लिपि मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि से पर्याप्त समानता रखती है।' नाहरघाटी और दशावतार मन्दिर में प्राप्त दो अभिलेख गुप्तकाल के हैं । कुछ जैन मन्दिर तथा मूर्तियाँ" भी यहाँ इसी समय की विद्यमान हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि उस समय यहाँ निर्माण कार्य चालू था । संवत् 919 में गुर्जर-प्रतिहार शासक भोज के संरक्षण में भी यहाँ निर्माण होता रहा । संवत् 1121 तक गुर्जर-प्रतिहार शासक राज्यपाल द्वारा एक मठ (मं. सं. 18, चित्र सं. 28 ) का निर्माण कराया जा चुका था । संवत् 1210 में महासामन्त उदयपाल 1. पं. आशाधर : प्रतिष्ठासारोद्धार : अध्याय 1 श्लोक 191 2. वराहमिहिर : वृहत्संहिता ( बंगलौर, 1917), अध्याय 56, श्लोक 6-8 । 3. अव साहु जैन संग्रहालय में सुरक्षित । 4. दे. - चित्र संख्या 49 | 5. मं. सं. 12, 30, 15 आदि । दे. - चित्र संख्या 17, 34 तथा 36 | 6. दे. - चित्र संख्या 50, 51, 52, 53, 541 7. दे. - मं. सं. 12 के अर्धमण्डप में दक्षिण-पूर्वी स्तम्भ पर उत्कीर्ण अभिलेख । 8. डॉ. एच. डी. सांकलिया जैन यक्षस् एण्ड यक्षिणीज़ बुलेटिन ऑव द डेक्कन कॉलेज रिसर्च इन्स्टीट्यूट जिल्द 1 अंक 2-4 ( मार्च, 1940), पृ. 1621 Jain Education International For Private & Personal Use Only स्थापत्य :: 99 www.jainelibrary.org
SR No.002774
Book TitleDevgadh ki Jain Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy