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________________ १६ जंबूदीवपण्णतिकी प्रस्तावना गा. ७, ४५४-५६- सूर्य का पथ सूची चय २ + योजन है । ६१ ક भिन्न-भिन्न जगहों ( जम्बूद्वीप, वेदिका और लवण समुद्र ) के चारक्षेत्रों में उदयस्थानों को निकालने के लिये उस जगह के चारक्षेत्र के अंतराल में का भाग देते हैं। एक मीथी का मार्ग समाप्त होने पर हटाव योजन होता है। इसी समय दूसरी बीवी पर एक परिभ्रमण के पश्चात् उदय होता है। इस प्रकार सर्व उदयस्थानों की संख्या १८४ है । ४८ १७० a गा. ७, ४५८ आदि- ग्रहों के विषय का विवरण काल वश नष्ट हो चुका है। चंद्र के आठ पथों में ( क्रमशः पहिले, तीसरे, छठवें, सातवें, आठवें, दशवें, ग्यारहवें तथा पंद्रहवें पथ में ) भिन्न-भिन्न नक्षत्रों का नियमित गमन बतलाया गया है। अथवा, भिन्न-भिन्न गलियों में स्थित नक्षत्रों के नाम दिये गये हैं। गा. ७, ४६५-४६७- एक चंद्र के नक्षत्रों की संख्या २८ बताई गई है पर कुछ नक्षत्रों की संख्या ( जगश्रेणी ) + [ संख्यात प्रतरांगुल x १०९७३१८४०००००००००१९३३३१२]x७ बतलाई गई है । यह राशि निश्चित रूप से असंख्यात है। इसी प्रकार समस्त तारों की संख्या भी असंख्यात बतलाई गई है। Jain Education International सम्बूद्वीप के १ चंद्र के २८ नक्षत्रों के ताराओं से बने हुए आकार बतलाये गये हैं। वे भिन्न-भिन्न वस्तुओं और बीवों के आकार के वर्णित है। गा. ७, ४७५-७६- आकाश को १०९८०० गगनखंडों में विभक्त किया गया है जिसमें, १८३५ गगनखंड नक्षत्रों के द्वारा १ मुहूर्त में अतिक्रमित होते हैं। इस गति से कुछ गगनखंड चलने में = ५९१०७ मुहूर्त लगते हैं अथवा १०९८०० x घंटे अथवा ४७ घंटे, ५२ मिनिट ९ ४८ २८५ १८३५ १०९८०० १८३५ १८३५ सेकंड लगते हैं। आधा मार्ग तय करने में २३ घंटे ५६ मिनिट ४२ गा. ७, ४७८ आदि भिन्न २ नक्षत्रों की गतियां मिस्र २ सभी नक्षत्र, यद्यपि भिन्न परिधियों में स्थित है, तथापि वे ५९ कर लेते हैं । systems, each of great dimensions, which however, are smali in comparison with the stupendous distances by which any two neighbouring systems are separated from one another. We may liken the universe to a broad ocean studded with small islands of varying sizes; one of the largest of these islands is believed to represent the systems of which the solar system is but a humble member, the galactic system as it is called The other systems are the spiral nebulae whose number we can but vaguely guess."-"The Sun, The Stars, And The Universe." p. 269. इस तरह हम यह अनुभव करते हैं कि आधुनिक ज्योतिष के सिद्धांतों तथा उनके आधार पर प्राप्त फलों की तुलना हम जैनाचार्यों द्वारा प्रस्तुत ज्योतिर्लोक से तभी कर सकते हैं जब कि चन्द्र और सूर्य आदि तथा वायुमंडल सम्बन्धी बातों को हम भली भांति किन्हीं निश्चित सिद्धान्तों के आधार पर रख सकें। जहां तक पृथ्वीतल से ज्योतिष चिम्बों की दूरी का सम्बन्ध है, किसी भी स्थान से उनकी दूरी विभिन्न स्थानों के लिये अति भिन्न-भिन्न अस्पतम और अधिकतम होती है। इसका मध्यमान पृथ्वी के होंगे जैसा कि जम्बूद्वीप के क्षेत्रों के विस्तार से स्पष्ट है । इसी उदम ऊँचाई दी है। आधुनिक दूरियों के वर्णन में हमने केवल पृथ्वी की मात्र एक योजना के घेरे में आ जाने से सम्बन्धित है। स्पष्ट है कि मेरु के परितः बिम्बों का परिभ्रमण पथ पृथ्वीतल के अवलोकनकर्ता की आंख पर तिर्यक शंकु आपतित करता है । सेकंड लगते हैं । परिधियों में होने के कारण मित्र है। मुहूतों में समस्त गगनखंड तय कारण हमने केवल पृथ्वीतल से उनकी मध्यमान दूरियों का वर्णन किया है जो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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