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________________ ३८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् श्रेणिकेन तदा सर्वे शुनका हंतुकामुकाः । दृष्ट्वा गता महाबुद्धया वारिता भोजनार्थिना ।। ५२ ॥ कुमारोच्छिष्टपात्राणि निक्षिप्य स महामनाः । तान् भुनक्ति स्म दीप्रांगः संप्राप्तानेकपात्रकान् ॥ ५३ ।। इस प्रकार कुमार को उपश्रेणिक दोनों परीक्षा में उत्तीर्ण देखकर पुनः राज्य-कार्य की परीक्षा के लिए महाराज उपश्रेणिक ने श्रेणिक आदि समस्त पुत्रों को भोजन के लिए अपने घर में बुलाया। जिस समय समस्त कुमार एकसाथ भोजन करने के लिए बैठ गये तब बड़े आदर के साथ उनके सामने सुवर्णों के बड़े-बड़े थाल रख दिये गये और उन थालों में उनके लिए खाजे घेवर, मोदक, खीर, मोठा माड़, घी, मूंगकामिष्ट, स्वादिष्ट चूरा, उत्तम दही और अनेक प्रकार के पके हए अन्न तथा मीठा भात और भी अनेक प्रकार के भोजन तथा पूआ, मगोड़े आदिक अनेक मनोहर मिष्ठान्न परोसे गये। जिस समय क्षुधा से पीड़ित तथा स्वाद के लोलुप सब कुमार भोजन करने लगे और भोजन के स्वाद के आनन्द में मग्न हुए, तब महाराज उपश्रेणिक की आज्ञा से राज-सेवकों ने भयंकर कुत्तों को छोड़ दिया फिर क्या था ? वे भयंकर कुत्ते सुगन्धित उत्तम भोजन को देखकर उसी ओर झुके और भौंकते हुए समस्त कुत्ते राजकुमारों के भोजन-पात्रों पर बात-की-बात में टूट पड़े। भोजन-पात्रों के ऊपर उन कुत्तों को टूटते हुए देखकर मारे भय के काँपते हुए राजकुमार अपने-अपने भोजन के पात्रों को छोड़कर एकदम वहाँ से भगे और आपस में हँसी करते हुए तितर-बितर होकर अपने-अपने घरों को चले गये। बुद्धिमान कुमार श्रेणिक ने जब यह दृश्य देखा कि ये कुत्ते आगे ही बढ़े चले आ रहे हैं और काटने के लिए उद्यत हैं तब उसने अपनी बुद्धि से उन सब कुत्तों को दूर हटाया और दूसरे-दूसरे कुमारों की पत्तरों को उन कुत्तों के सामने फेंककर उन्हें बहुत दूर भगा दिया और आनन्द से भोजन करने लग गया।॥४०-५३।। श्रुत्वैवं भूपतिर्भूरि चिताव्याकुलमानसः । कथं क्षिपामि राज्यं वै चिलातीसूनवे शुभम् ॥ ५४ ॥ अन्यदा दह्यमानेऽपि नगरे श्रेणिकोमहान् । सिंहासनातपत्रादि गृहीत्वा वनमाट च ॥ ५५ ॥ केचित्कुतान् समादाय खङ्गवान्ये स्वघोटकान् । केचिद्वौदिसंघातं राजपुत्राः वनं गताः ॥ ५६ ।। आकर्पोत्थं महीपालस्तथाभूद्वयाकुलांतरः । अन्यदा स्वसुतास्तेनाहूय नैमित्तसिद्धये ।। ५७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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