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अमरसेणचरिउ अहवा वि पत्तु णउ मुणइ तत्तु । तं विहलउ हारइ ता णरत्तु ॥११॥ रयणुव्व दुलहु सावयहु जम्मु । महपुणे मइ लद्धउ सुकम्मु ॥१२॥ भो पंडिय भणि महु लहु चरित्तु । सिरि अमरसेणि-वरसेणि सुत्तु ॥१३॥ ते सवण घण्णि जे सुणहि वाणि । संदेहु किंपि मा चित्तिठाणि ॥१४॥
धत्ता इय चउधरियहं वयणे, वियसिय वयणे, पंडिएण हरसेविण । तें कव्वु-रसायणु, सुहसयदायणु, पारद्ध उ मणु देविण ॥७॥
[१-८] अच्छहु दुज्जण दूरि वसंतई । कामकोहमयलोहासत्तई ॥१॥ चुज्जण-सप्पहु एय! अवत्थई । छिद्द-णिहाल " पइ पय सत्थई ॥२॥ वुज्जण चल्लणी व सम सीसइ । उत्तम पत्तहं संगु ण दोसइ ॥३॥ पत्त-अपत्तहं भेउ ण जाहिं । विसयासत्तई अत्थई माहिं ॥४॥ बइ दुज्जण-जणणीयइ भव्वउ । तो परिहरियइ मणुव सगव्वउ ॥५॥ दुज्जणु विसयकसायं रत्तइ । अच्छह सो पुणु कामें मत्तइ ॥६॥ जो भव्वयणु सोलगुणवंतइं । विसयकसायराय-परिचत्तई ॥७॥ सोयदाय जो इंदिय दंडई । दहधम्मइ-रयणत्तइ मंडई ॥८॥ सो भव्वु वि खडतिय पउ णिहि पालई । पत्तहं दाणु देइ अणिवारइ ॥९॥ सो भव्वयणु वि मह दयकिज्जहु । कम्मपयडि चूरि वि मुस्किज्जहु ॥१०॥ इह कह दुलंघ महु तुच्छमई । णउ मुणउच्छंदु गाहा दुवई ॥११॥ जिणमग्गु ण जाणउ मिच्छरई। णउ चउपहि दोहा पद्धडिय गई ॥१२॥ वायरणु तक्कु ण उर वीर-सामि । णउ दिद्वउ कहव ण सुणिउ ठामि॥१३॥
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