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अमरसेणचरिउ जिणचरणोवण्ण वि जो पवित्त । आयमरसरत्तउ जासुचित्त ॥९॥ उद्धरिउ चविह-संघभारु । आयरिउ वि सावयचरिउ चारु ॥१०॥ चउ-दाणवंत्तु गं गंधहत्थि । वियरेइ णिच्च जो धम्मपंथि ॥११॥ सम्मत्तरयण-लंकिय सरीरु । कणयायलुव्व णिक्कंपु धीरु ॥१२॥ सुहि परियणकइरव-वणहि हंसु । जिणवरसहमज्झें लद्ध संसु ॥१३॥ तं भामिणि दिउचंदही-मियच्छि । जिणसुय-गुर-भत्तिय-सील-सुच्छि ॥१४॥ तं जायउ गंदणु सोलखाणि । चउ महणा णामें अमियवाणि ॥१५॥ धण-कण-कंचण-संपुण्ण संतु । पंडियहं वि पंडिउ गुणमहंतु ॥१६॥
घत्ता
दुहियणदुहणासणु, वुहकुलसासणु, जिणसासणरहधुरधवलु । विज्जालच्छीघरु, रूवें णं सरु, अहणिसु किय विह उद्धरणु ॥४॥
[१-५ ] तं पणइणि पणइ णिवद्धदेह । णामैं खेमाही पियसणेह ॥१॥ सुरसिन्धुरगइ सइ वइ वि लील । परिवारहु पोसणु सुद्धसील ॥२॥ णर-रयणहं णं उप्पत्तिखाणि । जा वीणा इव कलयंठि वाणि ॥३॥ सोहग्गरूप-चेलणिय दिदु । सिरि रामहु सीया जिह वरि? ॥४॥ तहि उवरि उवण्णा रयण चारि । णं णंत-चउक्कसुरुव-धारि ॥॥ तं मज्झि पढमु वियसिय सुवत्तु । लक्खण-लक्खं किउ वसणचत्तु ॥६॥ अतुलियसाहसु सहसेकगेहु । चाएण कण्णु-संपइहिं गेहु ॥७॥ धीरें-गिरि गंभीरें-सायरु । णं धरणीधरु णं रवि-ससिसुरु ॥८॥
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