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________________ सप्तम परिच्छेद २५३ हुआ ॥१०॥ दूसरा बेचारा ( विनोद भी ) तिर्यंच योनि में भ्रमण करके धनिक वैश्य के रूप में उत्पन्न हुआ ।।१२।। वह देव ( रमन का जीव ) स्वर्ग से चय कर विनोद के जीव धनिक वैश्य का भूषण नाम का धनवान पुत्र हुआ ॥१२॥ धत्ता-देव योनि में पूर्व भवों को देखकर वह भूषण-कुटुम्बियों के जाने बिना घर से शीघ्र चला गया। वन में जाते हुए उसके पैर में सर्प लग गया | सर्प ने डस लिया ॥७-४।। [७-५] [ भूषण और उसके पिता धनदत्त की अभिराम और मृदुमति नाम से उत्पत्ति-वर्णन ] विषयों से विरक्त और उदासीन भूषण माहेन्द्र स्वर्ग में देव रूप में उत्पन्न हुआ ।।१।। पिता-धनदत्त ने रौद्र तिर्यंचगति रूपी भँवर में डूबकर महा दुखकारी परिभ्रमण किया ।।२।! भूषण का जीव-देव अंगदत्ति (नामक) राजा हुआ पश्चात् ज्ञान से भोगभूमि में उत्पन्न हुआ ॥३॥ इसके बाद स्वर्ग में और तत् पश्चात् चक्रवर्ती का गुणों से युक्त अभिराम नाम के पूत्र रूप में उत्पन्न हुआ ।।४। वहाँ चार हजार राजाओं की पूत्रियों को विवाहने के ( पश्चात् ) मन में विरक्ति के भाव धारण करके (वह) दिन-रात अन्तरंग की विशुद्धि के संबंध में विचारता है । और ) घर में रहकर निष्काम होकर आत्म-ध्यान करता है ।।५-६।। श्रावक के व्रत पाल करके पवित्र होकर वह ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ ॥७॥ धनदत्त ( भूषण के पूर्वभव का पिता ) भी बहुत योनियों में भव-भ्रमण करने के पश्चात् आकर झगड़ालू-विचारों का पोदनपुरी में मृदुमति ( नाम का ) ब्राह्मण पुत्र हुआ । वह पिता के द्वारा दुःख पूर्वक निकाल दिया गया ॥८-९।। वह अनेक शास्त्रों को पढ़कर ( घर ) आया। पिता ने अपने ( इस ) पुत्र को कण्ठ से लगाया ।।१०।। रोते हुए माता ने पानी पिलाया। उसके द्वारा ( मदुमति के द्वारा ) भी स्मरण किया जाकर और मन में जानकर अनुभव किया जाकर कहा गया ॥११॥ क्यों रोती हो ? उत्तर में उसके द्वारा मृदुमति से कहा गया-निश्चय से तेरे समान मेरा पुत्र था ॥१२॥ निकाल दिये जाने से वह विदेश ( भाग ) गया है, इसी से मैं रोती हैं। पथिक ( मृदुमति ) गहरी साँस लेता है ॥१३॥ घता-तब उस मदुमति के द्वारा उसे कहा गया-उदास न हो। तुम्हारा पुत्र ( ही ) यह मैं आया हूँ। तब उसके माता-पिता और स्वजन उसे देखकर सुखी हुए ॥७-५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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