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अमरसेणचरिउ जियसत्तु-राउ विण्णाय गाउं । कंचणमाला-पिय-भोयराउ ॥६॥ सुयकित्ति-परोहिउ सुय-पउरो । बंधुमइ-कलतहि हियइ-हरु ॥७॥ तहु पुत्ति-पहावइ गुणह-णिहिं । सा पडि(ठि)य जिणायम जुत्ति विहि ॥८॥ अण्णहि-दिणि बंधुमई अहिणा । सुत्ती सिजहि वट्ठी अहिणा ॥९॥ सुय णियइ विप्पु दुखिउ रुवई । सक्कार-करणि गउ तणु मुवई ॥१०॥ मह कट्ट कहव-कहव दहिउ । तहं विणसोएं विउ पज्जलिउ ॥११॥
घत्ता जणु-सुयण जि सोयाउरु, लिउ जहि मुणिवरु,
संवोहिउ गिरिणा जि बिउ । तं भय णिविणे, सोयादण्णे,
धारिउ अरि दुवि तऊ ॥६-८॥
[६-९] मंतवाय दढरेण दियंवरु । सो चल-चित्त जाउ संसययरु ॥१॥ सिद्धाणिय-विज्ज तउच्छंडिउ । भोय-पवट्टणि अप्पउ-मंडिउ ॥२॥ तासु पहावइ अणिसु जंपइ । एरिसु कम्मु ण जुउ-संपज्जइ ॥३॥ चरिय-रयणु मिल्लि वि तुसखंडो। के सं-गहहिविप्प दुह-कंडो॥४॥ पुणु-पुणु इय भासंती पावणु। तहो भट्टहु हवेइ दुह-दाहणु ॥५॥ एणइं दुहियई हउं संताविउ । हमि अहिउ समु मसि[हिय भाविउ ॥६॥ पुणु तहिं कुद्धे णिय णिज्जण-वणि । मेलाविय प्रत्ती विज्जइ खणि ॥७॥ तत्थई सा सुहझाणे थक्की । भावइ अणुवेहा भय-मुक्की ॥८॥ पुणु जणणे आलोयणि विज्जा । पेसिय अवलोयणेण मणोज्जा ॥९॥ ताई पहावइ णिय कइलासहि । थाइ वि सिद्धखेत्त सिव-बासहि ॥१०॥ सयल जिणिदहं णवि वि पहावइ । जाठिय जिण-हरि पयल-महावइ ॥११॥
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