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अमरसेणचरिउ जा करु-छित्तई ता विसहरेण । एका वट्ठी पुणु वोय तेण ॥३॥ मुय जिणपूया-भावंतियाउ । मरिऊण सगि सुर-जुवइ जाउ ॥४॥ पच्छा-आगमणहं एउ हेउ। एयहं तत्थ जि णिव तणुअ-भेउ ॥५॥ णिवडिउ अच्छइ इय सुणि वि वाय । पुम्वहं पणवेप्पिणु जिणहं पाय ॥६॥ सिघि वीयराय-पूया विहीसु । तप्पर जायाकय-णव-णिहीसु ॥७॥ जो कुवि वसु-भेय-विही-समग्गु । विरयई जिण-पूया संस-भग्गु ॥८॥ तहु किं णव संभव होइ एत्थु । सिज्झउ भव्वहं तुरियउ पयत्थु ॥९॥
पत्ता अण्णु जि मगहाहिव, मणि-भाविय किव,
मिच्छादिट्ठउ कोवि णरु । पीयंकरु णामें, सुह-परिणामें,
परिभमंतु महि सो जिवरु ॥ ५-२३ ॥
[५-२४]
सो गउ पोयणपुर अण्ण दिणि । जिण-भवण-पइट्ठउ जाइ खणि ॥१॥ पोयणपुर-पहुणा महिम-किय । जिगणाहहु केरी दुरिउ-हय ॥२॥ तं पिच्छि वि तें मणि सोउ किय । महु जन्म-णिरत्थउ सयलु गउ ॥३॥ णउ तिरइय एरिस महिम-मया । कइया वि ण दिट्ठउ अण्ण-कया ॥४॥ इय अणुमोयणु-गण पूरियउ । सो देसि उकाले चोइयउ॥५॥ जक्वाहिउ जायउ दिव्व-तेउ। मुणिविदहं तं उवसग्गु-हेउ ॥६॥ रक्खिय दावग्गि-जलंत जई । तम्हाउ चएप्पिणु सुद्ध मई ॥७॥ वेयढ-णिवासी खयर-पहु । मुदिदोदय णामें विज्ज वहु ॥८॥ पुणु जिण-अच्चण पुण्णण दिवि । हुउ सणकुमारु संभवि विभवि ॥९॥
घत्ता
तहं आवि वि लंका उरिहिं, णिउ मह रक्खु भय उपयलु। महियलु भुजि वि कालेण पुणु, हउं सिवउरि माणिक्क वरु ॥५-२४॥
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