________________
२०८
अमरसेणचरिउ
घत्ता
सुहि रज्जु करंतइ, जिणु-पय- भत्तहि, णिय परिवणु रंजहि कुमर ।
अण्णहिदिणिणिवसहं, विटू सुण हि कह,
चरिउ सिट्ठि सलाक वर ॥ ५-१४ ॥
[ ५-१५ ]
तं अवसरि वणवालु समायउ | फुल्ल-फलई भरि डालरि लायउ ॥१॥ णरवइ- अग्गइ धरिय तुरंतई | पणविवि णरवइ भई हसंतई ॥२॥ भो भो णरवइ महु वाय सुणि । जइवरु सम्मायउ तुम्ह वणि ॥३॥ देवसेणि-भडालउ संघ - हिउ । सुर-र- रिंद - णायंदह महियउ ॥४॥ तं सुणि वयणु राउ संतु । वत्थाहरण वि दिण्ण समुट्टिउ ॥५॥ तहं आणंद-भेरि देवाविय । ते सर्दे पुरयण-सम्माइय ॥ ६ ॥ चल्लहु पहु णिय परियण-जुत्तउ । मुणिवर जातय लोय-संजुत्तउ ॥७॥ गउ णंदणवणि दंतिहि - हिट्टउ । ओयरेवि तं उवरि सतुट्टउ ॥८॥ ति-पयाहिण इह मुणिह परिदह । पणमिउं णरवइ जय-जय सहं ॥९॥ पुणु तहं सवण-संधु तहं वंदिउ । पुणु-पुणु देवसेणि- मुणि वंदिउ ॥१०॥ कहि परमेसर जं जिण कहियउ । सावय-धम्मु वि भव्वयण सुहियउ ॥ ११ ॥ सुरवर - णर- विज्जाहर महियउ । तं णिसुणि वि मुणि नाहें कहियउ ॥ १२ ॥ धम्मु राय जीवहं दय-सहियउ । तं पालिज्जइं पढभु दयालउ ॥१३॥ णं कयाई अलियउ वोलिज्जइ । अलियइं थुथुक्कार करिज्जइ ॥ १४॥ परदव्वहं णउ करु लाइज्जइं । लोयइं चोरु भणि वि मारिज्जइं ॥ १५ ॥ पर-तिय-संगु ण कहव करिज्जइ । सिरु-मुंडि वि खर- रोहणु किज्जइ ॥१६॥ तुंडु - किण्णु करि पुर-फेरिज्जइ । णाकक्खुवि णीसारि वि दिज्जइ ॥ १७॥
Jain Education International
धत्ता तहं णिव लोयहं भय, णासइ जिउ लय, मरि कुज्झाणें णरयगइ ।
तहं पंच पयारहि, दुहमणिवाह,
छेइज्ज तिल-तिलु कुगई ॥ ५-१५ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org