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अमरसेणचरिउ
[ ५-१२ ]
तं णिसुणि वि गरुवउ भणई वाय । हउं किं करेमि निहि होणु जाय ॥१॥
जिणु - तिल्लोय - पहु ॥२॥
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उ इक्क वराडीय मज्झु वाय । किं अंचउ उ भणि विजई पहि लिउ उवासु । चउविह आहारहं णेमु-घोसु ॥३॥ दिणु-रयणि रहिय जिण सुच्छ गेह । णिय कूड एण चुंविय सुमेह ॥४॥ सुविहाण हाणु करे वि तेहि । जिणु सुय-गुरु-पुज्ज करेवि तहि ॥५॥ सु वराडी पंचहं फुल्ल ले वि । चाडाविय जिण-पय थुइ करे वि ॥ ६ ॥ पुणु गय विवहारिय-सत्थ गेहि । तहि अवसर सेट्टिणि खड र सहि ॥७॥ दिण्णउं भोयणु कम्मक्करेहि । अइ-विजयं कहि ललियक्खहि ॥८॥ संपुण्ण थालु लइ विट्ठ सुट्टु । हिय चितहि भायर कोइ इट्ठ ॥ ९ ॥ जइ आवहि मुणिवर-पत्त इत्थ । तिण्डु णिय भोयणु पुष्णेण अत्थ ॥१०॥
भावण-भावहं वे वि जाम । मुणि-जुयल समाई चरिय ताम ॥ ११ ॥ तो पिच्छि विष्णि मुणि भायरेहिं । परिगाहिय मुणिवर णय - सिरेहि ॥ १२॥ -ति-ति सुह मो [भो] यणेहिं । पाराविय णिय आहारु वे (दे ) हि ॥ १३॥ गय अक्खयदाणु चारण- णहहिं । संतुट्ठ सेठ्ठि कम्मंकरेहि ॥१४॥ लहु कियउ पुण्णु तुम्हि सुगइ-पंथु । चारण-पाराविय भव्व इत्थु ॥ १५ ॥ इव भुजहु भोयणु अण्णु इत्त । णउ करहि भोजु वहु तित्तिपत्त ॥१६॥ उहि आहारह हम णिवित्ति । अण्णहि दिणि भुं जहि सेट्ठिझत्ति ॥१७॥ दाहं पहा तुम्ह मरि विपत्त । सणकुमर-सग्गि [ वे ] घिय महंत ॥ १८ ॥ रिसि- सायर भोयं भू जियत्त । उप्पण्णई णरवइ-गेहि पुत्त ॥ १९॥
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घत्ता
कहि अम्ह जईस तिहुवण-ईस,
सावत्तिय माहि
कि कज्जे अम्हहं, दिउ लंच्छणु तहं, हम्म विडंवियण्णु
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विहिउ ।
भउ ॥ ५-१२ ।।
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