________________
१९६
अमरसेणचरिउ
[५-८] परतिय दुग्गइ-गमणहं सुहरि । परतिय अवजइ जलहु जि सुरसरि ॥१॥ परतिय-संगमि जो रस-माणउं । तिण-समाणु मणिज्जइ राणउ ॥॥ आयरु करि वि अण्ण तिय-वज्जहु । सुहगइ-गमणु वि णियमइ सज्जहु ॥३॥ अइयारु वि मणि लोहु ण किज्जइ। लोहें धम्मायरु णउँ दिज्जइ ॥४॥ लोहासत्तउ कासु ण मण्णइं । गम्मागम्मु किं चि णउ गण्णई ॥५॥ अण्णु अणत्थ दंदु पर-कारणु । जाणि वि णरय-दुक्ख सय-धारणु ॥६॥ णियमु गहिज्जइ तण्हाच्छंडि वि । मणु पसरतउ धरइ विडि वि ॥७॥ दिसि-विदिसहि गम संखा-करणउं। पावस-कालि गमणु परि हरहणउं ॥८॥ खर-वन्वर पुलिंद जहि णिवसहि । जिणवर-धम्मु णत्थि तहिं देसहि ॥९॥ तहिं णउं वसइ णस्थि साधम्मिउं । भाउ वि गउ करेइ सुह कम्मिउं ॥१०॥
घत्ता
जो पाव परायणु, पाविय खलयणु,
तिरयंच वि जे दुठ-मण । ते धरइ ण पालइ, कह ण णिहालइ,
मज्झत्थे अच्छहि सयणु ॥५-८॥
रामायउ किज्जइ एयचित्ति । सव्वहं जीवहं धारे वि मित्ति ॥१॥ अमि -चउदसि पोसहु करे वि । पसरंतउ णियमणु संहरेवि ॥२॥ भोगोवभोय-संखा विहाणु । किज्जइ सावहि वि सुह-णिहाणु ॥३॥ अतिहिहिं सो भोयणु मुििह दिति । ते भोयभूमि-सुहु पर लहंति ॥४॥ रयणिहिं भोयणु वह दुरिय-खाणि । णउ सुज्झइ कि पि वि खाणि-पाणि ॥ अणगाल-तोउ सायणेण जीउ । वहु-रोयहं पोडिउ होइ कोउ ॥६॥ सायार-धम्मु यहु मुहिं जुत्ति । अणुरायं धरहि जि लहहि मुत्ति ॥७॥ सव्वे वि गहि वि तं णविवि साहु । मण्णिउं मणि भयउ अउव्व लाहु ॥८॥ पुणु सुणि वि कुमारहं मुणिहि पाय । पणविवि अक्खहि थिर अमियवाय ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org