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अमरसेणचरिउ
लइ णट्टी जहच्छडु करि विदुट्टु । के करउ खग्ग गह- गमण भट्टू ॥१८॥ गेह । वलि होउ मरणु महु इह मुणेह ॥ १९ ॥
इव दुद्धरु जाणउ मज्झ
घत्ता
वहु विज्जाहरु,
कुमर ण खेउ करे ।
तं णिसुणि वि खेयरु, धोरउ
हउ लिउ तव थाणहं, णियय विमाणहं,
णं करि भउ णिय चित्त धरे ॥४-७॥
उक्तं च ॥ गणिका-तस्करो वैद्य, भट्ट-पुत्र, नरेश्वरः । सलोभाः शिशवः सप्तः, पर- दुक्खं न ज्ञायते ॥छ।
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[ ४-८ ]
अच्छा कह दिवि गुण-सायर । रहि कंदप्प-भवण भू-गोयर ॥१॥ अंचहि मयण-मुत्ति रंजिय-मण । णउ हंढहि तुव इहि [मण] सुच्छण ॥२॥ सुर- गिह- पच्छिम दिस वे वि तरु । णउ जोयहि जाइ वि तत्थ णिरु ॥३॥ एus वितरु वसईणि रुत्त (६) उ । अवरई रक्ख-दु-विचित्त ॥४॥ उच्छंडहि तुह दिट्ठि पलंतई । भक्खे सहि तिल-तिल वि करंतई ॥५॥ तो मण्णिउ खेयरवयणु सुट्ठ । णउ जोयमि णरवइ जइ मणिट्टु ॥६॥ गउ खेरु कहि यि कज्ज तत्तु । सुहि अच्छहि णिव सुउ जिणहं भत्तु ॥७॥ अवरहं दिणि कुमरह रहस- चित्त । गउ वण-मज्झें तें दुमइ-चित्त ॥८॥ कोऊहल विक्खण गवउ तत्थ । एयंतरु फुल्ल लए वि सुच्छ ॥९॥ सुघिउ यि घाणह कुमर तत्थ । जे रासहं करणई अइ समत्य ॥१०॥ भउ रासभु तं तेएण तत्तु । गोयउ मणुयत्तणु कम्म- कित्तु ॥११॥ धण [तण] धुवइ कच्छा लिय दुद्धभाय । सुउ जा णइ-मज्झिणि सुच्छभाय ॥ १२ अण्णई-जीउ चिरवइ रमुहि । अण्णण्णई कम्मकरे विविहि ॥१३॥ पणरह दिण-वित्तई खयरु आउ । णउ दिट्ठउ णिव सुउ सुच्छकाउ ॥१४॥ तहं दिट्ठउ खलु पउ-पत्र करंतु । खग जाणिउ इह णरु भउ तुरंतु ॥ १५ ॥ तं अण्णाहं भूरुह-फुल्ल लेइ । सुंघाविय रासभ असुह- खोइ ॥ १६ ॥ तं पव्भावें जं जि सरीरहं । वइरसेणि साहम्मिय संगह ॥ १७॥
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