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अमरसेणचरिउ
[ ४-६ ]
जाहि दुट्ठ महु णयणहं अग्गई। पडउ वज्जु तुव लोहणि-मत्थई ॥ ९ ॥ तं णिणि वि पुत्ति दुहवयणई । णउ लग्गइ विद्धह सुइयरणई ||२|| भय विलक्ख किव्हाणण थेरी । चितइ णिय मम्मि विवरेरी ॥३॥
उ चल्लइ महु किउ धुउ एवहि । तं वलि भेउ भेउ इव कुमहिं ॥४॥ विद्ध-वेस अक्खेइ कुमारहं । जोणिय रूवें जिण इव मारहं ॥५॥ णउ करेइ वावार- सहासहं । दिणि-दिणि दीसइ णिहि तुव पासहं ॥ ६ ॥ कहि कहि माणि णिसर सच्च महं । जं होइ सुक्खु महु हियइ वहु ॥७॥ उक्तं च ॥ अवला सिद्धमन्नं च कर्षणं फलिताद्रुम । चत्तारि रक्खणीयानि - लक्ष्मीवृंदं च पंचमी ॥१॥ सुणि विद्ध-वेस धुउ भणउं तुज्नु । आयासगामि- पावलिय तं तेय-पसूय तिष्णि लोय । ले आवउ संपइ लहु जोवउ सुरणर भुइवासि देव | जीवाइ असंखई विविह
मज्झ ॥८॥ भमेय ॥९॥ भेय ॥१०॥
उ आवागमणु ण मुणइ कोइ । विलसउ वहु संपइ पुण्ण हेइ ॥ ५१ ॥ तं णिसुणि वि माया करइ वेस । महु मणह-मणोहर हुव असेस ॥ १२ ॥ भो णिणि कुमर महु दय करेहिं । मई वोलि उवाई तुव गएहिं ॥ १३॥ जइ आवइ महु घर कुमरु शत्ति । लहु जाइ मज्नु चित्तेहि अत्ति ॥१४॥ कंदप्पदेव - जइ सयलु तुहु | लहु करउ जान कुमरेण सह ॥१५॥ इव पव्वउ पुज्जिउ मज्झु वेइ । तहं जाइ ण सक्क दुसज्झु सोइ ॥ १६ ॥ सायरहं मज्झि कदपथाणु । किउ वंदउ सुरु मह सुह- णिहाणु ॥ १७॥ तुव पाय पसायहं णमउ देउ । दय करि लइ चल्लहि जाय हेउ ॥१८॥ तं णिणि विचितिउ कुमर तहिं । इव खिवउ समुद्दहं मज्झि इहि ॥ १९ ॥ लहु जाइ सल्लु महु हियइ महि । णिपsिहउ फेडउ हियइ-महि ॥२०॥ जई सायर-मज्झहि मिच्छदेउ । णउ गमणु जिणागम- सुणिउ भेउ ॥२१॥ णिय कज्ज अत्थ ले जाउ जहिं । मुक्कउविर लुट्टणि मरइ तहि ॥ २२ ॥ पावलिय पहावहे णह सुहेण । गउ विद्ध दासि लइ सरगिहेण ॥२३॥
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