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अमरसेणचरिउ
[ ४-४ ]
गय विद्ध-वेस वइसेणि-याणि । सा भणइ णिसुणि भो अमियवाणि ॥ १ ॥ महु पुत्ति मागही तुव - विओय । पहिरे सेयंवर तुव विसोय ॥२॥ णिय-वेणी-दंड मुक्क- केस | उ हाइ- असइ पिय- रहिय वेस ॥३॥ उ जंप णयणह जुवइ तत्थ । हूयउ विओउ तव तणउ जत्थ ॥४॥ खटट्टिय पट्टिय लेवि सुत्त । तव विरह तत्तिय मज्नु पुत्त ॥५॥ जं चलग्गु पाण ण जंति झत्ति । उद्धरहि कुमरु वलु वेइ पत्ति ॥६॥ तो णिणि गयउ तह वइरसेणि । जहं कुट्टणि-पुत्तिय पाव-खाणि ॥७॥ सा कवलें जंपइ कुमर सुणि । मइ पाविणि वुरवउ किउ जणि ॥ ८ ॥ जं णिस्सारिउ तुह चंदमुह । महु खमहि देव अवराहु तुहु ॥ ९ ॥ जं कियउ कम्मु मइ दुम्मईहि । तं मत्थइ पडियउ मह इहोहिं ॥ १० ॥ तं इह अवस्थ महु पुत्ति आय । रोवंति रयणेदिणु तुव दुहाय ॥११॥ उ - सिंगालइ एय वाल । णउ वद्धइ वइणी लंववाल ॥ १२ ॥
उक्तं च ॥
कौसंभ कज्जलं कामं,
कर्ण - कुंडल - कार्मुका ।
गत्ता भर्तारि नारीणां ककारा पंच दुर्लभाः ॥१॥ तं सुणि वि कुमर चितिउ मणेण । पुणु इव पाविणि महुच्छलइ केण ॥१३॥ बहु करइ डंभु भो डवइ-लोहिं । महु हियइ इट्ठच्छडि लयउ एहि ॥१४॥ सहकार - फलह महु भेउ लेहूं । णिस्सारिउ यि गिह करु गहेइ ॥ १५ ॥
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घत्ता
तं फल इव दावमि, विद्धवि गोयमि,
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णिय परिहउ सारेमि लहु 1
किय दाय- उपायहं, वलच्छल भायहं, लेमि चूयफलु लियउ महु ॥४-४॥
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