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अमरसेणचरिउ
[४-३] तं णिसुणेप्पिणु कुमरु-वुत्तु । इव झयडउ फेडमि तुम-तुरंतु ॥१॥ हउ वंट्टि देमि तुमि चहुमि वत्थ । जं सुहु संपज्जइ सव्व इत्थ ॥२॥ तहं मण्णि उवेयंकर हि भव्व । णिय घहिं पयट्ठहि सुहहि भव्व ॥३॥ तो वयणु सुणेप्पिणु रायपुत्तु । णिय कला-विणाहिं मइ सजुत्तु ॥४॥ अप्पहु महु तिणि ति वत्थ झत्ति । देसउ मण-इच्छिय तुम्ह थंत्ति ॥५॥ तो दिण्ण लेवि किय अप्प हत्थ । पावलिय चित्त णिय चरण सुत्थ ॥६॥ जंठिय कर गिहिय तत्थ धुत्त । कंथा उरि पहिरिय रयण-दित्त ॥७॥ गउ लहु आयासह रहस-जुत्तु । गिरि-सायर-णइ-पुर लंघि तत्तु ॥८॥ वेएं कंचणपुर-मज्झि पत्तु । वीराण-वीरु धुत्ताण-धुत्तु ॥९॥ सुह-कम्महं संपइ लद्ध तत्तु । जं पुव मुणे दाणेण-पत्तु ॥१०॥ तहं चोर विलक्खई भयई ताम । सिरु-धुणहि णियंकरु-मलहि जाम ॥११॥ वहुजाइ जाइ णह चोर-मोसु । हम ठगिय महाठग करि विओसु ॥१२॥ हा-हा हमि किं किउ तुज्झु दईय । मण-इच्छ वत्थ दइच्छिणि लईय ॥१३॥ खण मासह सेय उपेय वणु । तिस-भुक्ख-दुक्ख वहु सहिय पुणु ॥१४॥ मारिउ जई लिय विज्ज-तिण्णि । छलुकरि वि अवरु लइ गयउच्छिणि ।१५। किं करहि इवहि कह कहहि वात । णं जाणहि कहि गउ धुत्तु-भत्त ॥१६॥ यउ चिति वि णिय-णिय घरह पत्त । इत्थंतरि कुमरह रहस चित्त ॥१७॥ तहं कंथा झाडइ वर पबित्त । सयसत्त-रयण महि पडिय तत्त ॥१८॥ ते लेप्पिणु कूरह दूत-कीड । हंडइ सह-णयरह गुण-गहोड़ ॥१९॥ सुच्छइ विविह विलासई माणइं । पुरयण-रंजइ बहुविह दाणइं ॥२०॥
घत्ता
कंदप्पहं रूवह, अणिगण विभूयह,
पउमिणि-उर महुयर सरिसु। अवरहिं दिणि वेसहि, दिठ्ठ कुमरु तहि,
मग्गणयण तहु भणहि जसु ॥४-३॥
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