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अमरसेणचरिउ
[ ४-२ ]
ए तिष्णिवत्थ भव्त्राई जोइ । हमइं चयारि णउ वंदु होइ ॥ १॥ तं कज्जें झयडहि इत्थ जोइ । उ झडउ फेss अम्ह कोइ ॥ २॥ जइ जाहि झडउ - हरि सुवत्त । अम्होपरि दयकरि भव्व मित्त ॥३॥ तें वयणें सो वि कुमारु वुत्तु । इणि तिण्णि-वत्थ- गुणु कहहु जुत्तु ॥४॥ जें कज्जें लग्गहु वार-वार | तो भर्णाहं सुणइ णिव वण- भयार ॥५॥ तह जोई एकु मसाणभूमि । विज्जा साहंतउ णिजण-वर्णमि ॥६॥ रस-मासह साहिय णिच्च जोइ । वहुकालें सिज्झिय विज्ज सोइ ॥ ७॥ संतुट्ठी विज्जा जोइ एहि । विय कथा-जट्टिय-पावलीहिं ॥८॥ गतिणि वत्थ गुण साहि विज्जु । जोई सह अम्हहं सुणिउं चुज्जु ॥९॥ रस-मास रहिय हमि रण्ण ईहि । संहारिउ जोई हमि हि तहि ॥ १०॥ ए वत्थ तिण्णि हमि ले वि आय । जं जाणहि इव करि ब्रम्ह भाय ॥११॥ तो वयणु सुणेष्पिणु वइरसेनि । महु अक्खहु पिहउ वि सुच्छुखोणि ॥१२॥ तो गरुव-चोरु अक्खेद सुणु । इह कंथा झाउछ रयण - मणु ॥१३॥ त रव्व-नेय दिणि-दिणि पडंत । बहु रोड-बिहंडण सुहइ-वित ||१४|| जट्ठिय सिर-सतह फिरइ उवरि । विज्मुज्जल जलहर - तेय तुरि ॥१५॥ सिर-कमलई खंड-सेणु दलए । पुणु आइ वि सामि हि कर-चडए ॥१६॥ पावडिय पाय आरुहइ जं जि । जं इच्छा पुरइ खणि हि तं जि ॥१७॥ सा लेहि खणĂ गयणमाहं । राहुं गयणु फिरह जिय मरकताहं ॥१८॥ पुणु आवs वेयं सुकिय थणि । आयासगामि पावलिय जाणि ॥ १९ ॥
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घत्ता
तं वित्तंत्तु सुणेविणु, हिय धरेप्पिणु, रहिउ अचुज्जइ कुमरु तहि । तs वत्थई एयइ, विहि संजोयई, चडहि हत्थ महू एवहि ॥ ४-२ ॥
॥ उक्तं च ॥ दानेतपसीवीर्जवं विज्ञान- विनए न च । विस्मयो नहि कर्त्तव्यं, बहु रत्नानिवसुन्धरा ॥ १ ॥
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