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चतुर्थ परिच्छेद [ ४-१]
ध्रुवक जव गइय विज्ज अंवहं तणिय,
णरवइ-सुउ मणि जूरिऊ। सुइणाण-वलेण वि तेण तहं
कहमवि अप्पउ धीरऊ ॥ छ । यउ चिति वि णिव-सुउ णिय मणेण । इव किज्जइ उज्जमु गइ खणेण ॥१॥ विणु उज्जम विणु णउ कज्ज-सिद्धि। विणु उज्जमाइ णउ होइ रिद्धि ॥२॥ तहं जयर-मज्झि णिव-सुउ भमेइं। किय कम्महं पेरिउ कित्थु णउ रहेइ॥३॥ गउ संझाकालें जयर-वाहि । देवालइ-सुण्णइ-उववणाइ ॥४॥ वइसेणि वइट्र-उ मज्झि जाम । अण्णेकू कहं तरु होइ ताम ॥५॥ णिय देस-भाय वसु-रिद्धि चत्तु । णवयार-गुणइ जिण-पाय-भत्तु ॥६॥ तं समयं तक्कर अद्ध-रत्ति । चत्तारि समायई पाव मुत्ति ॥७॥ विज्जाहरु-तय विज्जासमेउ । घरुदारु-चइ वि जोइयउ जउ ॥८॥ जोई मुसेवि परधणहं लुद्ध । पल मयला-भक्खण अइ विरुद्ध ॥९॥ देवगिहि जहत्थिउ कुमरु पत्त । परसप्पर कंदरु-करहि तत्त ॥१०॥ तिणि समयहं तक्कर सेण करि । तहियाणिउ तक्करु एहु तुरि ॥११॥ कुमरें तह तक्कर रयणि पिटु । किं कज्ज झयडहु भणहु इट्ठ ॥१२॥ तो रयणीहरहि-हकारि लिउ । वइसारिउ णिय पासेहि तुरिउ ॥१३॥ वुज्झेइ कुमरु किं कज्ज इत्त । परसप्पर-कदर करहु भत्त ॥१४॥ तं कारणु साहहु महु णिरुत्तु । हउ झयडहु फेडउ तुमतु मंतु ॥१५॥
घत्ता
तं सुणि सुह-वयणई, मणि धरि रयणई,
साहहि तक्कर सुणहि तुहुं। हम्मह तइ वत्थई, वहु गुण-जुत्तई,
कथा-पावलि लउडि इहु ॥ ४-१॥
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