________________
१४८
अमरसेणचरिउ
यि रूव दक्खालहि णाह मज्मु । णउ सहिसक्कइ तें भगिउगुज् ॥ ६ ॥ तिय असगाहें सो सप्पु जाउ । सो पिक्खि वि तें पुक्करिउ गाउ ॥७॥ महाहु उरउ इहु दियहु रूवि । सु विवाहिय पिउणा खिविय कूवि ॥ ८ ॥ इवत्त सल पुर-मज्झि जाय । विणए आहूयउ गरुडु आय ॥९॥ आएसिड जहि पंडरिउ णाउ | लहु चंचु विपारि वि असहिकाउ ॥१०॥ बहु देस भमि विवाणसि वि आउ । कूवय उवरें चड वच्छि थाउ ॥ ११॥ ता पणिहारिहि इय कहिय वाणि । दियवर सुय पिउ-उरओवि जाणि ॥१२॥ ता गरुडें जाणिउं सयलु अत्थु । कणि भक्खणत्थु सो गयउ तेत्थु ॥१३॥
घत्ता
सो चंच ( चु) पुडहि संगहिउ, अथकंपंतु वरायउ ।
हि गच्छंते ललियक्खरिण, तहु वोलियउ विणायउ ॥ ३-११॥
[ ३-१२ ]
तक्खय अड इहि तक्खय-सिलाहि । चंचु संघक्खित्रि भक्वहि ताहि ॥ १ ॥ इय वयणें पेरिउ सो वि गरुडु । ले गइउ वि सो तह तक्ख-सिड ||२|| उवयारिउ जामहिं भणिय वाय । जे वणियहि गुज्झ वि पंखिराय ॥३॥ भासहि तहु जीविउ तयणु जाय । णउ इहु असच्चु कुलगयणभाय ॥४॥ उक्तं च ॥ नीयमान सुपर्णेन नागो पुण्डरीको ( 5 ) व्रवीत् ।
यो स्त्रीणां गुह्यमाख्याति तदंतं तस्य जीवितं ॥ १ ॥
तं णिसुणि वि जंपिउ वइणएय । एयहु विसलोयहु भणहि भेय ॥५॥ तें तच्च रूउ भासिउ समग्गु । अत्थहु तहु केरउ मणुवि लग्गु ॥ ६ ॥ पुणु पभणिउ तें ललियक्खरेण । अक्खर एयहु दायारु जेण ॥७॥ ण वि मण्णइ गुरु सो साणु जोणि । सयवारउवज्जइ
दुक्खखोणि ॥८॥ पुणु मायंगु वि कुलि उप्पज्जइ । सोय उएह वह दुक्खहि खिज्जइ ||९||
उक्तं च ॥ एकाक्षर प्रदातारं यो गुरुं नैव मन्यते । स्वानजोनि सतं गत्वा चांडालेष्वपि जायते ॥ १ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org