________________
१४६
अमरसेणचरिउ
[३-१०] मो होउ अर-रयणिहि विओउ । सुहि करहि कोलमाणेहिं भोउ ॥१॥ इय पडिवण्णउं वाणइय एण । जं भणिउ कोरंटियइ तेण ॥२॥ कि वहुणा रायहु सुमण दिण्ण । भरि झल्लरि तज्ज णोए पडिण्ण ॥३॥ रयणिहिं सुइयइ सप्पेण खदु । मुउ तक्काले सो सुविस-विद्ध ॥४॥ हा हा पभणंतउ गरयपत्तु । जिणधम्में विणु किह सुगइ पत्तु ॥५॥ इत्थंतरेण धणपत्ति वाय । णिसुओ उरएं पारुक्खि-घाय ॥६॥ पुत्थइव सहइ घल्लेविचल्लु । जा गच्छइ धण्णंतरुच्छइल्लु ॥७॥ उरएं सह मिल्लउ[तह]किओसि । पुणु भासिउ कत्थई जाहि भासि ॥८॥ तें भासिउ पारुखि जिवण-हेउ । सह पुत्थें सहु चल्लिउ वि णेउ ॥९॥ ते भासिउ पच्छय दक्खवेहिं । वडु रुक्खु वि भप्फो कियउ ताहिं ॥१०॥ पुणु पवणे पुणर वि सलिलएण । उड्डुविउ वहाविउ ते णणेण ॥१॥ तें पिक्खि वि चित्ति चमक्किओसि। गोवितें उरएं डंकिओसि ॥१२॥ विह लंघलेण सो मरण पत्तु । तहु वइणेएउ[खण]खणि वि खत्तु ॥१३॥
घत्ता होमहु लग्गउ उरयाहं सहु, वइरु ण होई सुंदरू । एवहि पुंडरियउ फणि पवरू, दियवर रूवि गयउ घरू ॥३-१०॥
[ ३-११] मुय अट्ठादह कुलयाइ जाम । पुंडरिउ वि दियवर पास ताम ॥१॥ वाणारसि णयरिहि पढइ सत्थु । अइवेय एण जाणेइ अत्थु ॥२॥ ता दियवरेण णिय कण्ण दिण्ण । भोयई भुजइ तहु सहु खण्ण ॥३॥ एकइया तुग-तवंगएण । णिसि समइ वि सुहि सोवंतएण ॥४॥ पुच्छिउ कामिणि णिय कुलु-पयासि । तें पभणिउं सप्पु वि सच्च भासि ॥५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org