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अमरसेणचरिउ
तहं अच्छइ रक्खसु पावरासि । दुद्दरिसणु-भीसणु सव्वगासि ॥४॥ तं णरवs अग्गइ भइ दुट्टु । भो पहु किं रम्मु भणेहिं सुट्टु ॥५॥ भोयणु सह जीवहं पुहइ इठु । ताहें विणु लोयहं सव्वु कट्टु ॥ ६ ॥ तं णिसुणि वि मारिउ रक्खसेण । तं रज्ज णवडु विट्ठउ सुहेण ॥७॥ खण मास समायउ तत्थ पाउ । दुद्दरिसणु भीसणु किन्ह गिरि-गुह तं आणणु उद्धकेस । गुंजाहल यई जमहं तं वुज्झिउ राणउ अक्खि वेइ । किं रम्मं पहु जंपइ रइ-सुहु तिय सुहेण । तं मारिउ एवहि वहु णरवइ रक्खसेण । संघारिय
काउ ॥८॥
वेस ॥९॥
दीसइ इत्थ लोइ ॥ १०॥
उ कोइ रज्जु विट्ठइ णवल्लु । रक्खस भउ मण्णहि हियइ सल्लु ॥१३॥ उक्तं च ॥
पंथि समं णत्थि जरा, दरिद्द समो परिभओ णत्थि । मरण-भयं च अयाणं, च्छुहा समा वेयणा णत्थि ॥ छ ॥
तहि अवसर मंतिहि रयउ मंतु । देवाविउ पडहउ णयरि तत्तु ॥ १४ ॥ जो णरवइ-पट्टह सुहडु आय । तं वइ सइ णिव पर देहि वाय ॥१५॥ णिव सेर्वाह तं पय सह महल्ल | भुंजइ सह मेर्याणि पुणु सिल्ल ॥१६॥ तं णिसुणि थिरु तह एउ वृत्त । धुत्ताणधुत्तु नामें सजुत्तु ॥ १७॥ णरवइ सिंहासणि आइ विठु । वंदिउ णिव मंति महल्ल सुठु ॥ १८ ॥ घत्ता
सुहि रज्जु करंतहं, जिण-पय-भत्तहं,
रक्खसु तक्खणेण ॥११॥
पावें जिद्दएण ॥१२॥
णिय पइ-पालइ राय थिए ।
खण मास समायउ, रक्खसु दायउ [ वायउ ]
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कि मिट्ठउ पहु भणहि धुए ॥ ३-५ ॥
[ ३-६ ]
तं सुणे वि णरवइ संतुटुउ । रक्खस अग्गइ भइ हियउ || १ || जं जसु सुक्खु होइ गरुयालउ । तं तहु मिट्ट सुहु धव सालउ ॥२॥
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