________________
अमरसेणचरिउ
[ ३-२ ]
रोयहं
इत्थंतरि कंचणपुरहं णिउ । विस्सूइय तं रज्जु अपुत्तहं विहलु गऊ । तह णत्थि कोइ तहु गोय-मज्झि लग्गंति राय । परसप्पर मूढ दुरास भाय ॥३॥ तह मंतिहि वारिय सयल सुत्थ । णउ झंखहु अलियउ सह णिरत्थ ॥४॥ जहु देव णराहिव पट्ट हत्थि । तं करइ रज्जु इहं पुरहं सुत्थि ॥५॥ तं णिणि वि सव्वहं वयणु मण्णु । सिंगारिउ दंतिय तहं खष्णु ॥६॥ दिउ पुण्ण-कलसु तहु सुडि तत्तु । भंमह मणिजडियर सुज्जदित्तु ॥७॥ करि लयउ सुंडि उच्चत्तु करि । फिरियड कंचनपुरु सयल हरि ॥८॥ उढाइ कुंभु विकासु सिरि । णउ होणई घरइ [हि] विविसइ सिरि ॥९॥ मुइ सयल राय-पुरयण वि राय । णउ मंण्णिउ कहु मणु तत्थ राय ॥१०॥ णिग्गउ पुर वाहिर गयउ रणि । जिह अमरसेणि थिउ सुकिय पुणि ॥ ११॥ णिद्दाभर सुत्तउ रायपुत्तु । जिणधम्मा सत्तउ सुद्ध चित्तु ॥१२॥ पाविज्जइ विविह सुहाइ जत्थ । उप्पत्ति जरामरणाई तत्थाइ तहं चिय- जीउ जाइ । किय-कम्म- गलत्थिउ णउ जं थाइ पसुत्तउ अमरसेणि । तं दिट्टु गयंदहं उत्थाइ तत्थ णिवपुत्त जाणि । णिव-पट्ट धुरंधर करि ढालइ तं सिरि उवरि कुंभु | जय कारिउ पुरयण
धत्ता
Jain Education International
पुरयण मंति महल्लाह, वहुणिव अण्णाह पर्णामि सव्वहं अतुलवलु । अमरसेणि णरेसरु, पउमिणि मणहरु,
क्षत्ति मुऊ ॥१॥ उद्धरइ पऊ ॥२॥
तत्थ ॥१३॥
रहाइ ॥ १४॥ गुणणिसेणि ॥ १५ ॥
तेय तरणि ॥१६॥
चत्त डंभु ॥१७॥
दंति चडावउ णं अमरु ॥३-२॥
॥ उक्तं च ॥ अमोघं जलदे वृष्टि अमोघं प्रार्थित सतं । अमोघं सद्गुरुवाक्यं अमोघं राजवर्द्धनं ॥ छ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org