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अमरसेणचरिउ सच्चे जाहिं चयमणि भंतिहिं । गय भणेवि खेयर णिव थाहिं ॥१२॥ सुणिउ वयणु मयि खयर चवंतहि । मइ पिय जंपिउ करहु तुरंतहि ॥१३॥ वे चूय फलई आणियहि वेइ । दिज्जहि विहि भाहिं रोउ-खोई ॥१४॥ गय उड्डिवि विणि वि उवयारहं । गिरि सुकूट सहकार फलाई जहि ॥१५ तं आणिय गिण्हि वि तुड गहि । पुणु पुणु मुचियइ वि ताहं महि ॥१६॥ विट्ठइ सहकारह उवरि सुहि । अभागयं दाणह देण विहि ॥१७॥ तं संबंधु सुणिउ वरसेहिं । जं खयरेहिं वि कहिउ पवीणहो ॥१८॥ तहि अवसरि जग्गिउ अमरसेणु । णिउ पहरइ विट्ठउ सुहणि सेणु ॥१९॥ णिय लहु भायणिदसकज्जहि । जे वि भयाउरू वज्जिय भजहि ॥२०॥ तावहिं साहारहिं उवरि पित्त । वे अंव सुहल कुमरग्ग पत्त ॥२१॥ वइसेणि लेवि ते गठि वद्ध । गउ याणइं गरुवउ भाइ वुद्ध ॥२२॥
घत्ता सुत्तउ लहु भाई, गरुव सहाई, जें पाइय मण इंच्छ जणि । पह समयहिं उद्विउ, णिय मणि तुट्ठउ, पणमिउं गरुवउ वीरु तहिं ॥२-१२॥
[२-१३ ] सु विहाणे चल्लिय वे वि वीर । भय भीसणु उववणु चत्तु धीर ॥१॥ तहं मग्ग जंत दिट्ठउ रवण्णु । सु सरोवर कमलणि णीरच्छण्णु ॥२॥ तहं विद्धइ जाइ वि सुच्छपालि । वहुतरवरमंडिय रवग-खालि ॥३॥ तहि अवसरि वरसेणेहि गठि । णय अंचलु खुल्लि वि रोउणट्ठि ॥४॥ सहकारु गरुव दिउ जेट भाय । यहु असहिदेव णिव-रिद्धि-दाय ॥५॥ गय भिण्ण-भिण्ण विणि वि कुमार। उज्जाणभूमि कय सुद्धि वार ॥६॥ फिरि सम्मायई सरवरहं तीर । कियकायसुद्धि तहं सुद्धणीर ॥७॥
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