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अमरसेणचरिउ तउच्छंडहि इव लहु तुम कुमरहं । मण्णिउ णिव-सुव-वयणु चंडालहं ॥८॥ गय कुमर [विपडि सिर-लेप कित्तु । कुण्डल-समउल-रुहिरेण लित्तु ॥९॥ पहु-अग्गइ थाइ वि गइ-सिरेण । ए आणिय वे सिर तुम-भणेण ॥१०॥ एविच्छहि तुव सुव तुव-अणिछ । ए हयवर विणि वि लेहि सुट्ठ ॥११॥ तं जोइ वि गरवइ भणिय चंड । पुर-वाहिर लेप्पिणु जाहु मुंड ॥१२॥ थाइज्जहु सूरिय उवरि वे वि । जं पुरयणु जोवहि आइ ते वि ॥१३॥
घत्ता तहं लेप्पिणु तुडइ, वेयं चंडइ, धरियइ सूरिय-उवरि तहिं । तहं सुणि णिव पत्तिहि, कुमर-मरणु तहि रहसिय अंगि ण माइ कहिं ॥२-८५
[२-९] विजयादे रोवइ भुव हसोय । हा परवइ कि किउ पइइ-हेय ॥१॥ णउ याणिउ जुत्ताजुत्त देव । दुष्टुिं सुणि वयणइ णिव हसेव ॥२॥ णिद्दोस अकज्जें किरण-तेय । माराविय णंदण रणि अजेय ॥३॥ हा हाइ वदइय मइ कियउ तुज्झु । इव मणह-मणोरह पुज्ज तुज्झु ॥४॥ तह रुयणु सुणेप्पिणु अइस दुक्खि । रोवंति भव्व तिरयंच-पक्खि ॥५॥ भव्वहं संवोहिय णिवह पत्ति । अच्छइ सुव-सोय-विओय अति ॥६॥ सुहि अच्छइ णरवइ णिय पुरेहिं । भुजेइ वि रइसुहु रइ-समेहिं ।।७।। तं सुणि देवरायहं सुच्छ कहा । कहि कुमरह गइ कहि भइय वुहा ॥८॥ किं मुय कि जीवहि सोलर्णािहं । कहि संपत्तइ-पुर-राय-दुहि ॥९॥ तं णिसुणि भणइ वुहु सुहिं भव्वु । भो देवराय णिव णि वह थुव्वु ॥१०॥ इत्थंतरि कुमर वि णिव-सभए । पट्ट इणिव-पाण लए वि गए ॥११॥ बहु भूमि वइ वि गय वणि-गहणि । जहिं कुल-कुलंति तरु वरस वणि ॥ २॥ जहि मणुव ण दोसइ सउण तहिं । अइ सघणइ तण-अंकुर वि हि ॥१३॥
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